हौव्वा

एक ऐसा रिश्ता जिसके शुरू होने से पहले ही उसके नाम से डराया जाता है

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rekha shishodia tomar
rekha shishodia tomar 12 Dec, 2019 | 1 min read

सास ऐसी,सास वैसी..जब किसी लड़की की शादी होने जा रही हो तो सबसे ज्यादा उसे सास नाम के हौव्वे से डराया जाता है।।

"अरे..अभी सोकर नही उठी,सास के सामने नही चलेगा ये सब"

"बेटा जो बना है खा ले..नही तो ससुराल में सारी हेकड़ी निकाल देगी सास"

"इतनी देर लगती है तुम्हे नहाने ख़ाने में इतने में तो सास पचास बात सुना देगी"

पर क्या सारी सासे ऐसी होती है।?नही।। यहाँ ये उम्मीद करना बिल्कुल बेमानी हैं कि सास आपको बेटी की जगह रख देगी बिल्कुल।
100 में 10 घरों में ही बहुएं  बेटी की तरह रहती होंगी।।नही तो हर घर मे बहु के लिए एक लक्ष्मण रेखा है..वो आपके लिए भी है और आपकी भाभियों के लिए भी।।

क्या ये सम्भव है कि जैसे आप अपने पिता के गाल खिंचते है,पेट पर टपली मारते, किसी बात को कहने से रोकने के लिए मुँह पर हाथ रख देते है..ऐसा ससुर के साथ कर सकते है?


नही...क्योंकि पिता ने आपको बचपन से पाला है,हर स्थिति में देखा है । लेकिन आपके ससुर से आप 23,24 या 25 की उम्र में मिले है तो फर्क आप समझ सकते है..
बिल्कुल यही फर्क माँ और सास के बीच है।।इस स्थिति से केवल लड़की नही लड़का भी गुजरता है।।उम्र बढ़ने के साथ परिपक्वता आने के साथ वो भी कुछ ऐसी बातों से दो चार होता है..
"पहले तो फलां चीज़ तू ऐसे नही खाता था ,अब खाने लगा"
"पहले तो इस चादर को बिछाने नही देता था,अब सो जाता है इस पर"
ऐसे ही अनगिनत उलाहने जो लड़के को शादी के बाद मिलते है।।अब इस बदलाव में  घर मे आई उस लड़की का कितना योगदान है,ये तो वह लड़का ही बता सकता है लेकिन बढ़ती परिपक्वता का असर जरूर है।।
सीधी सी बात है जो जिद अपनी माँ से बेटा कर सकता है वही जिद वो 30 की उम्र में पत्नी से या बच्चो के सामने कैसे करेगा।।
वैसे ही जैसे लड़की शादी से पहले जो नखरे माँ को दिखाती है शादी के बाद जब उसी तरह की जिम्मेदारी में पड़ती है या मां बनती है तो माँ की दिक्कतें समझने लगती है.. तब वो जिद की जगह सहयोग के लिए आगे बढ़ती है।।
अब बात सास की..कितनी लडकिया  है जो शादी से पहले पाककला में,गृहस्थी के अन्य कार्यो में,तीज त्योहार के नियमो में दक्ष होती है।।
एक कहावत सुनी होग आपने 'एक सास पीछे दस सास होती है' मतलब अगर आपकी सास नही है तो कुनबे पड़ोस की दस औरते खड़ी हो जाएंगी आपको तीज त्यौहार, शादी में ये बताने के लिए की किस चीज़ का क्या नियम है।।
और नियम भी वहीं जो उनके घर मे होते है जबकि हर घर के रीति रिवाज़ तथा दूसरी स्थितियाँ एक सी नही होती।।
मैंने कितनी औरतों को उनके घर के शादी फंक्शन में   घर की कोई बड़ी बूढ़ी ना होने पर,और पचासियों औरतों की अलग अलग सलाह देने पर परेशान,चिड़चिड़ी यहाँ तक कि रोते हुए देखा है।।
तब उनके मुँह से यही निकलता है.."आज माता जी(मम्मी जी) होती तो इन सबकी बेकार की बाते और नखरे नही झेलने पड़ते।।
क्योंकि भारतीय समाज के शादी और त्योहार के  रीति रिवाज ही कुछ ऐसे है जिनमे व्यक्ति अकेला रहकर कुछ नही कर सकता..
कई बातें जो दकियानूसी लगती है अपनी सास की उनके पीछे भी कोई ना कोई लॉजिक होता है..और अब तो ये scintific लॉजिक आपको कहीं भी पढ़ने को मिल जाएंगे बस सर्च मारिए..
अगर एक अच्छी बहु बनने के संस्कार माँ देने की कोशिश करती है तो एक अच्छी गृहिणी,माँ ,पत्नी बनने के संस्कार सास डालती है।।
बस किसी की ठीक ठाक होती है,किसी की अच्छी किसी की बुरी,किसी की बहुत अच्छी..
जनरेशन गैप हमेशा रहा है और रहेगा..हमारी जनरेशन का भी है हमारे बच्चो से..
तो बस आखिर में यही प्राथर्ना की सबको प्यार से समझने और समझाने वाली सास और ससुराल मिले..और सास से प्यार से सब कुछ सीखने वाली बहु मिले...
रेखा तोमर


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