वाबस्ता.................

हर कोई किसी ना किसी से ज़ड़ा हुआ है, चाहे - अनचाहे बंधा हुआ है, कोशिश कर लो कितना ही छुड़ाने की, बांधने वाले ने बड़ी तसल्ली से पकड़ रखा है.

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rashi sharma
rashi sharma 29 Aug, 2022 | 0 mins read

ग़म से कुछ इस तरह से वाबस्ता हुए कि,

खुशी का एहसास दुगना हो गया,

वो कहता है उसका ग़म मेरे ग़म से ज़्यादा गहरा है,

मैं कहती हूूँ कि मेरी खुशी का उजाला,

उसके ग़म से ज्यादा गहरा है,


उसने दबी आवाज़ में कहा कि,

वो हार गई, ज़िन्दगी के दुखों से,

क्या तुम असर नहीं होता शिकस्त का,

मैंने भी मुस्कुरा कर कहा की अंजान हो तुम मेरी हार से,

मैं हार जाती हूँ, मगर मेरा हार मानने को दिल नहीं करता,


बहुत साथ निभाया उन बैगानी सांसों ने,

साथ रही तब तक उससे अंजान रहे,

जब साथ छोड़ने लगी तो ख्याल आया कि,

ऐ तो सौदा था कुछ उम्र के लिए, हमारी उम्र पूरी हुई तो,

उसने भी अपनी उल्टी गिनती शुरू कर दी,

वाह री, ज़िन्दगी तू तो वाकई में गणित की टीचर निकली.

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