समय का कर्म............

संवारने को आऊँ तो ज़मीन के तिनके को भी आसमान पर टांग दूँ, मैं समय सबका नसीब संवार दूँ, ना हुक्म सुनता हूँ ना अर्ज़ी, मन का मालिक हूँ मैं एक जगह टिकता भी नहीं मैं.

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rashi sharma
rashi sharma 17 Aug, 2022 | 1 min read

दुनिया को लगता है सिर्फ इंसान ही कर्म करता है,

मेरी नज़र से देखों समय भी हमारे जीवन में अपना कर्म करता है,

घड़ी की सुई उसकी दुनिया है ऐ बात अब पुरानी हो गई है,

सूरज और चाँद उसके बदलते वक्त के गवाह है,

इसमें भी लोगों की रूची कम हो गई है,


मैं समय अपने हिसाब से चलता हूँ,

ना किसी कि सुनता हूँ और ना ही किसी को अपने आगे कुछ समझता हूँ,

बड़ा घमंड़ है मुझे मेरे होने पर, इतराता हूँ मैं अपने नसीब पर,

जब हर कोई मेरे बदलने का इंतज़ार करता है,

जब दुनिया का कोना - कोना अपने बेहतरीन दिन के आने की राह तकता है,


किसी की ज़िन्दगी में कोई कमी नहीं है, तो कई के पास दो वक्त की रोटी भी नहीं है,

कोई डूबा हुआ है अथाह धन के सरोवर में, तो कोई रोज़ाना कर रहा है जद्दोजहद अपनी ज़िन्दगी संवारने के लिए,

कुछ अलग नहीं है उनके पास जिनके पास सब कुछ है,

महज़ एक अच्छा समय है जो अपने कर्म से उनकी तरक्की में इज़ाफा कर रहा है.


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