ढ़लता सूरज.................

छुप गया वो भी हमसे परेशान हो कर, मद्धम पड़ गई उसकी रोशनी हमसे मिलकर, ना जाने क्यों सारी कायनात हमसे खफा हो गई, दुआ भी लगती है हमसे नाराज़ हो गई.

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rashi sharma
rashi sharma 28 Jul, 2022 | 0 mins read

देखों इसे गौर से ये हमारी कहानी कहता है,

रोज़ ढ़लता है, रोज़ उगता है,

इंसानों के काम को परिभाषित करता है,

सहर हर दफा एक नई ऊर्जा भर देती है,

और संध्या होते ही हमारे भीतर सब खत्म कर देती है,


मायूसी की गर्त में सब कुछ डूब रहा है,

ढ़लता सूरज देखना अब बेकार लग रहा है,

तुम ही बताओं तुम जैसा कैसे बना जाए,

खुद जल कर उम्मीदों को कैसे जगाया जाए,

थकन होने लगी है हर दिन की कोशिशों से,

तुम ही बताओं खुद के कैसे संभाला जाए,


आसमान से उतरता है, पर्वतों में छुप जाता है,

रात को आवाज़ देकर खुद चाँद से बतियाता है,

हमारी भी बात अब अक्सर आसमान के चहेतों से होने लगी है,

क्या करें ज़मीनी बातें नसीहतें नहीं लगती,

वो भी अब गर्मी की धूप की तरह चुभने लगी है.

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rashi sharma

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