"किसानों का दर्द "

जो खुद मेहनत करता है, लाखों का पेट भरता है, लगन देखों उसकी, ना थकता है और ना ही शिकायत करता है, सब्र कर हर सफर पार करता है.

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rashi sharma
rashi sharma 29 Jul, 2022 | 1 min read

धोती - कुर्ता और कंधे पर स्वापी,

नंगे पैर और हाथों में दराती,

सुबह से रात तक अपनी ज़मीन सींचता है,

मेरा अनमोल जीवन तो मेरे कपड़ों पर लगे मिट्टी की,

खूशबू में ही सिमटा है,


वो अन्नदाता है, जो सबको खिलाता है,

हर निवालें में उसकी मेहनत का स्वाद आता है,

मिट्टी की रख वाली भी उसी के हाथ है,

किसने कहा उसका काम आसान है,

कभी जा कर देखों उसकी ज़मीन को,

पानी कम उसके पसीने के कारण ज़मीन में नमी ज़्यादा है,


दिन को रात, रात को सुबह होते देखा है उसने,

ज़मीन को ज़िन्दगी बनते देखा है उसने,

कहता नहीं कभी कि वो थक चुका है,

क्योंकि हौंसलों की कमी की वजह से कई,

हरि - भरी ज़मीनें बंजर होती देखी है उसने,


कुदरत से गुज़ारिश कर रोज़ाना बारिश की अर्ज़ी लगाता है,

सूखे से परेशान है इतना कि अपना आप भूल जाता है,

कर्ज़ का अंबार उसे जीने नहीं देता,

और बादलों का कहर फसल अच्छी होने नहीं देता,

बड़ी कठिन हो गई है दुनिया उसकी,

मेहनत तो पूरी करता है,

लेकिन बदले में उसका मेहनताना उसे ही कम पड़ता है.







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