कुछ हिरणी सी चंचल मैं

मेरी कविता मुझे परिभाषित कर रही है कि मैं कैसी हूँ।

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Radha Gupta Patwari 'Vrindavani'
Radha Gupta Patwari 'Vrindavani' 03 Oct, 2020 | 1 min read
Deer Poem Radha Gupta

कुछ हिरणी सी चंचल मैं,

कुछ बच्चों सी मचल मैं,

जीवन के हर पल को जीती

बेबाक बिंदास सजल मैं।

राधिका सी गोरी हूँ  मैं,

बृज की ऐसी छोरी हूँ मै

बाँके बिहारी जी की

बाँकी सी दीवानी हूँ मैं।

साकारात्मकता से भरी हुई,

निडरता से सदैव डटी हुई,

अपने में ही मस्त रहने 

वाली प्यारी सी सजी हुई।

हंसना ही मेरा मूलमंत्र है,

आशावादी ही मेरा यंत्र है,

दूसरों के दुख में संबल 

बंधाती वह सच्ची मित्र है।

न टूटती न बिखरती हूँ मैं,

हर बार संभल जाती हूँ मैं,

दुगुनी उत्साह-उमंग से

दुबारा खड़ी हो जाती हूँ मैं।

अपने ही विचारों में खोती हूँ मैं,

जज्बातों को पन्नों पर लिखती हूँ मैं

कौन,कहाँ,किससे और क्यों

से कोसों ही बहुत दूर रहती हूँ मैंं।

कैमरे में पलों को कैद करती हूँ,

कैनवास पर रंग उकेरती हूँ,

हर उम्र हर रंग हर वक्त में

शामिल हो महफिल सजाती हूँ।

कुछ कर गुजरे की तमन्ना लिए हूँ,

बृज को कुछ लौटने के लिए हूँ,

'वृन्दावनी' राधा नाम सार्थक कर

प्रेम रस की प्याली लिए हूँ।।

धन्यवाद

राधा गुप्ता 'वृन्दावनी'


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Radha Gupta Patwari 'Vrindavani'

radhag764n

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