अपनी-अपनी जुदाइयाँ(2)

इस कविता के माध्यम से अलग अलग व्यक्ति व परिस्थितियों की जुदाईयोँ का वर्णन किया गया है।

Originally published in hi
Reactions 0
348
Radha Gupta Patwari 'Vrindavani'
Radha Gupta Patwari 'Vrindavani' 23 Jan, 2021 | 1 min read
1000poems

जुदाइयों की भी अपनी होती है कुछ अनगिनत परछाइयाँ।

छोड़ चली जब बेटी बाबुल का घर-द्वार बसाने घर साइयाँ।।अनगिनत आशीष-दुआओं के साथ सब देते है समझाइयाँ।

माँ की सीख पिता का मान लिए अनगिनत ही अच्छाइयाँ।।


वतन की परवाह यूँ जवानों को भरी हुई हैं किस्से-कहानियाँ।

खौल उठता है खून रगों का जब गीत गुनगुनाती है पुरवाइयाँ।।

नवल वधु को घर छोड़ आये दिन-रैन विरह में की सिसकियाँ।   सीमा पर अनवरत डटे रहे चाहें कितनी ही लगी हों गोलियाँ।।


प्रेमी मिलन में तड़पती-मचलती-विरही प्रेयसी की तन्हाइयाँ।पल प्रतिपल मिलन को चाहते हैं एक दूसरे की झलकियाँ।।

समझाते बुझाते फिर मिलन की चाहत की करते मनमर्जियाँ।

प्रेम रूप को अभिव्यक्त करती अमर प्रेम की  ये निशानियाँ।।

*****************************

धन्यवाद

राधा गुप्ता 'वृन्दावनी'




0 likes

Published By

Radha Gupta Patwari 'Vrindavani'

radhag764n

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.