चारों ओर प्रेम ही प्रेम है...

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Priya Aggarwal
Priya Aggarwal 01 Jan, 1970 | 1 min read

 

प्रेम

एक प्रयास प्रेम को समझने का..

क्या है ये प्रेम ?

प्यार का एहसास प्रेम है..

समुद्र से गहरा प्रेम है..

किसी के लिए प्यार से बोलना प्रेम है..

तो किसी के लिए दिखावा प्रेम है..

तो किसी के लिए ज़िन्दगी कुर्बान करना प्रेम है..

प्रेम चारों ओर है..

बस पहचानने की देर है..

 

सोचा फिर, से तो जाना ..

मुस्कुराना भी तो प्रेम है..

किसी को प्यार भरी निगाह से देखना प्रेम है..

पक्षियों का सुबह चह-चहाना प्रेम है..

मां का दुलार प्रेम है..

पिता का समझाना प्रेम है..

बहन का डाँटना प्रेम है..

फिर उसका रूठ जाना प्रेम है..

भाई का फ़िक्र करना भी प्रेम है..

 

भिन्न-भिन्न प्रकार का है ये प्रेम..

 

शीतल भाव रखना प्रेम है..

पशु-पक्षी से प्यार, उनका हमारे प्रति दुलार प्रेम है..

निस्वार्थ भाव रखना प्रेम है..

ईश्वर की आराधना प्रेम है..

 

 

चारों ओर प्रेम ही प्रेम है.. 

फिर भी मनुष्य इतनी पीड़ा में क्यूँ है ?

 

चलो आज एक वादा करें खुद से..

ताकत बनाए इस प्रेम को..

फिर देखें ये ज़िन्दगी कितनी अनमोल है..

 

चारों ओर प्रेम ही प्रेम है..

                   ~ प्रिया

 

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