घर तक का सफ़र

इन्सान सदा वक्त से हारा है

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Prem Bajaj
Prem Bajaj 25 Oct, 2020 | 1 min read


घर तक का सफर बहुत मंहगा पड़ा ‌

मां कित्ती दूर है , मैं तो तक गई , अब नहीं चला जाता , भूख से भी पेट में दरद होवे है ।

बस बिटिया थोड़ी देर और ।

कल से एही कह रही है , ( तुनक कर 4 साल की रीना बोली ) ना खाने को कुछ मिलता है , बस चले जाओ , , हम गांव कर्मों जा रहे हैं , सहर में क्यूं नहीं रूके और ना कोई गोदी में लेता है ।

का करे बिटिया सहर में काम ख़त्म हो गया गांव में सब अपने हैं मिल - बांट कर सब थोड़ा - थोड़ा खाए लेंगे । और गोदी में लल्ला है ना , वो दुखी महीने का चल नहीं सकता , बापु के पास देख इत्ता सामान है तोके कैसन उठाए ।

 तीन दिन से पैदल चल रहे था रामु का परिवार गांव जाने के लिए, शहर में कोई काम नहीं देता कोरोना की वजह से , भूखों मरने की नौबत आ गई थी । अभी गांव पहुंचने में तीन दिन और लगने थे , खाने का कुछ सामान नहीं , जो था खत्म हो चुका , भूख प्रयास से तड़पते पांचवें दिन मासूम लल्ला ने प्राण त्याग दिए , कब तक मां की सुखी छाती को निचोड़ता , बेटी भी मरणासन्न हो रही थी , आंखों में आंसु , पैरों में छाले , बदन ढलका हुआ, भूख - प्यास से बेहाल , छटे दिन गांव पहुंचे तो , परिवार से मिले , सबसे पहले बिटिया को वैध को दिखाया , इस घर तक के सफर ने बेटा छीन लिया था , अब कहीं बेटी भी ना छिन जाए ।

मां-बाप, भाई - बंधु दिलासा देते हैं , खाने - पीने का इंतजाम करते हैं , सब ठीक हो गया , लेकिनघर तक का ये सफ़र एक टीस छोड़ जाता है सब के मन में , सदा के लिए ।


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Prem Bajaj

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