जलाकर रावण के पुतले को देखो कहते अच्छाई की हो गई जीत बुराई पर ,
क्या सचमुच बुराई हार गई , क्या सच की झूठ पर जीत हुई ?
हंस रहा रावण भी ये देख , एक रावण ही दूजे रावण को जला रहा ,
ना कोई राम नज़र आता , ना लक्ष्मण नज़र आ रहा ।
सहर्ष स्वीकार कर लिया बनवास पिता का वचन निभाने को ,
ऐसा भाई आज कहां मिलेगा , चला जो संग भाई की सेवा को ।
सीता सी भार्या भी आज कहीं खो गई ।
चल पड़ी थी जंगल में पति के नक्शे कदम पर जो ।
वचन निभाने वाला दशरथ भी शायद हो गया ।
किया बदनाम कैकयी को जिसने मारने रावण को ये प्रपंच रचा ,
आज की कैकयी मगर सचमुच स्वार्थी हो गई ।
उस रावण ने किया सीता का हरण था , मालूम था उसको इसमें ही उसका मरण था ,
फिर भी उसने कुदृष्टि ना उस पर डाली थी ,
रावण की सेना भी उसके अस्तित्व की करती रखवाली थी ।
आज का रावण देखो , लूटता मासूमों का अस्तित्व है ,
ना देखता बहु- बेटी ना देखता कली अनखिली मासूम है ।
कौन जलाएगा इस रावण को , जो पुतले हर साल विद्वान रावण के जला रहा ।
ना जाने क्या होगा इस सृष्टि का , कहां ये संसार जा रहा ।
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