अतृप्त आत्मा की आवाज़

एक मां की आत्मा अपने बच्चे को दूंगी देख कर सदा तड़पती हैं , वो कभी चैन से नहीं रहती ।

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Prem Bajaj
Prem Bajaj 04 Oct, 2020 | 1 min read

 आलोक कपूर अपने आफिस में बैठे हैं , अचानक दरवाजा खुलता है ।

क्या मैं अन्दर आ सकती हूं सर ?

एक खूबसूरत लड़की लगभग 20 - 25 साल की उम्र दरवाजे पर खड़ी जवाब का इंतजार कर रही है , और आलोक एक टक उसे घूरे जा रहे हैं , जैसे कोई भूत देख लिया हो ।

में आई कम-ईन सर ?

आं, हांआआआआ यस, यस ,कम इन प्लीज़ , आलोक सोच में पड़ जाते हैं कि ये चेहरा जाना- पहचाना सा लग रहा है ।

आलोक अतीत की यादों में खो जाते हैं ।

 आज से 20 साल पहले ऐसे ही एक दिन आफिस में बैठे थे कि एक खूबसूरत लड़की आती है ।

 मे आइ कम इन सर ?

उसे देखते ही आलोक का दिल जोरों से धड़कने लगता है , ऐसा लगा सीने से निकल कर अभी बाहर आ जाएगा ।

आलोक एकदम से अपनी कुर्सी से उठकर उसे कुर्सी देते हैं , बैठने का इशारा करके ,खुद उसके सामने वाली कुर्सी पर बैठ जाते हैं ।

आलोक , जवां धड़कते दिल का मालिक , उंची- चौड़ी कद - काठी , घुंघराले बाल, गोरा रंग , दूध सा सफ़ेद कोट- पेंट , उस पर लाल रंग की कमीज़ और लाला टाई ।

लड़की भी उसे अवाक् सी देख रही है , अचानक दरवाजा खुला तो दोनों की तंद्रा भंग हुई ।

मि० शाह ... आलोक बाबा ये साइन कर दो ।

 जी शाह साहब , लाईए ।

उसके बाद वो लड़की से पूछते हैं कि वो कौन है और क्या चाहती है ।

सर मेरा नाम अक्षिता है , मेरी शादी को दो साल हो गए , शादी के एक साल बाद ही मेरे पति की एक कार एक्सीडेंट में मौत हो गई । तब से मैं ससुराल में ही थी , लेकिन अब कुछ दिनों से मेरे ससुर बहुत परेशान कर रहे हैं , कल तो बलात्कार करने की भी कोशिश की , सास पहले से ही नहीं थी किससे कहूं , अब मैं वो घर छोड़ आई हूं ।

 आपका बहुत नाम सुना है सर आप ने जो नारी आश्रम बनाया है मुझे वहीं रख लिजिए प्लीज़ , मेरा कोई भी सहारा नहीं , ना माता-पिता ,ना कोई सगा - संबंधी ।

अक्षिता आप कितना पढ़ी है ‌?

जी एम. ए. इक्नोमिक्स ।

अगर आप को इसी आफिस में जाॅब मिल जाए तो आप करेंगी ?

ज़रूर सर ।

देखिए , मैं वैसे भी कल असिस्टेंट के लिए इश्तिहार देने वाला था , आप आ गई तो आप ही ये जाॅब एक्सेप्ट किजिए 😀 और फिलहाल आप दो दिन नारी आश्रम में रहिए , उसके बाद आप को फ्लैट दे दिया जाएगा ।

धन्यवाद सर 🙏

अक्षिता को आलोक ड्राईवर के साथ नारी आश्रम भेज देता है , लेकिन उसके दिलो-दिमाग दिमाग पर अक्षिता ही छाई है ।

ना जाने उस रूप सुन्दरी में ऐसी कौन सी कशिश है कि दिल उस की तरफ खिंचा चला जा रहा है ।

आलोक पूरी रात आंखों में ही बीता देता है सुबह की इंतजार में , कि कब सुबह हो और उस रूप की रानी के दर्शन हों ।

अक्षिता आज साड़ी पहन कर आई है आफिस में मगर आज तो वो कल से भी ज्यादा सुंदर लग रही है ।

आलोक उसे अकाउंट्स फाईल देता है और काम समझा देता है कि क्या करना है ।

आलोक अक्षिता की टेबल अपने ही रूम में लगवाता है , वह उसे अपनी आंखों से दूर नहीं रखना चाह रहा , दीवाना सा हो गया जैसे उसका ।

दो दिन बाद उसे एक फ्लैट ले कर दिया जाता है , जो आलोक के घर के रास्ते में ही पड़ता है , आलोक सुबह आते हुए अक्षिता को साथ ले आता है और जाते समय उसे छोड देता है । 

इस तरह अक्षिता एक नई जिंदगी शुरू करती है , मन लगाकर काम कर रही है आफिस में भी सब की चहेती बन गई ।

अक्षिता जब भी लंच करने बैठती आलोक भी उस की टेबल पर जा कर बैठ जाता और उसका लंच बड़े चाव से खाता , इस तरह धीरे-धीरे आलोक को अक्षिता के हाथ का खाना इतना अच्छा लगने लगा कि वो रोज़ अक्षिता से ही कहता लंच लाने को ।

कभी -कभी तो जाते हुए थोड़ी देर अक्षिता के पास रूक जाता उससे बातें करता रहता ।

एक दिन ......... अक्षिता आज क्या बात है, तुम कुछ गुमसुम सी हो ‌।

जी सर आज कुछ तबीयत ठीक नहीं लग रही , थोड़ी हरारत महसूस हो रही है ।

तो आज आफिस नहीं आना था ।

नहीं सर , काम भी तो ज़रूरी है , बस जल्दी से निपटा कर चली जाऊंगी ।

अक्षिता लंच टाइम तक काम पूरा करती है और जाने को आलोक से इज़ाजत लेती है , तो आलोक कहता हूं कि , तुम्हें यहां से कोई साधन तो मिलेगा नहीं जाने के लिए , थोड़ी देर रेस्ट रूम में आराम कर लो आज आफिस जल्दी बंद करके तुम्हें छोड़ दूंगा ।

आज आलोक आफिस जल्दी बंद करते हैं , स्टाफ को भी छुट्टी दे दी , और अक्षिता को घर छोड़ने गए तो ....

अक्षिता तुम आराम करो , आज मैं तुम्हें अपने हाथ की चाय पिलाता हूं ।

अरे , नहीं सर आप बैठिए मैं चाय बनाती हूं ।

 फिर सर , कहा ना आफिस में बेशक मैं सर हूं और तुम एम्पलाय, लेकिन आफिस के बाहर हम दोस्त हैं ।

अक्षिता मुस्कराते हुए ...ओ.के. दोस्त ।

तो चलो दोस्त का कहना मानो और लेट जाओ , मैं चाय बना कर तुम्हारे रूम में ही ले आऊंगा , वहीं पी लेंगे ।

अक्षिता बैडरूम में जाकर लेट जाती है , लेटते ही वो गहरी नींद में सो गई ।

आलोक जब चाय लेकर आया तो अक्षिता को इस तरह सोए हुए देख कर एक पल के लिए ठिठक गया ।

ऐसा लगा मानो हुस्न की मलिका उसके सामने हो , होंठों पर हल्की सी मुस्कान , गालों पर लटें बिखरी हुई , काली नागिन सी , सीना सांस लेते हुए ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो दो मासूम पंछी कैद में फड़फड़ा रहे हो ।

आलोक अपने उपर काबू नहीं रख पाया , और आक्षिता के पास जाकर उसकी बिखरी लटों को संवारने लगा ।

अक्षिता ने करवट बदली तो आलोक का एक हाथ उसके सीने के नीचे आ गया , अब तो आलोक का तन- बदन इश्क की गर्मी से झुलसने लगा , काबू ना रहा खुद पर और दो जवां जिस्म प्यार की आग में झुलस गए , दूनियां की सब दिवारों को तोड़कर एक हो गए दोनों ।

जब खूमार उतरा तो दोनों को कुछ बोलते नहीं बन रहा था , क्योंकि मन में तो दोनों के ही एक - दूजे के लिए तड़प थी ।

दोनों ने एक दूजे को भाव भरी नज़रों से देखा मगर लफ़्ज़ों ने साथ नहीं दिया , कुछ नहीं कह पाए एक - दूजे से ।

आलोक चुपचाप अपने घर चला गया ।

अगले दिन से सब कुछ वैसा ही चल रहा था , लेकिन दोनों के मन में जैसे कुछ था कहने को , पर ज़ुबां साथ दे तब ना ।

एक महीने बाद , आलोक मुझे कुछ कहना है ।

मैं जानता हूं , मैं भी तुमसे कुछ कहने की कोशिश कर रहा था , लेकिन लफ्ज़ साथ नहीं दे रहे थे ‌ ।

अक्षिता आइ लव यू ।

ऐसा लगा अक्षिता का दिल 💞 अभी उछल कर बाहर आ जाएगा ।

आलोक तो अब हमें इस प्यार को कोई नाम देना चाहिए , क्योंकि हमारा प्यार मेरी कोख में आ चुका है ।

अक्षिता , मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं , लेकिन .......

लेकिन क्या आलोक , मैं गरीब हूं इसलिए , तुम्हारे स्टेट्स की नहीं हूं ना , इसलिए तुम मुझसे शादी नहीं कर सकते !

नहीं अक्षिता वो बात नहीं , दरअसल मैं शादीशुदा हूं । मैं तुम्हें सब कुछ दूंगा , लेकिन शादी ..... मैं एक पत्नी के होते हुए दूसरी शादी कैसे कर सकता हूं ।

आलोक लेकिन मैं क्या करूं , मैंने तो तुम्हें दिल से चाहा है , मेरा तुम्हारे सिवाय और कोई भी नहीं ।

इसी उधेड़बुन में छह महीने बीत जाते हैं , तीन महीने बाद ही आलोक अक्षिता को आफिस आने के लिए मना कर देता है ,ताकि कोई उस पर उंगली ना उठाए , और घर पर उसे हर सुविधा मुहैया कराता है ‌।

अक्षिता को सातवें महीने ही डिलिवरी हो जाती है , और एक सुन्दर सी प्यारी गोल-मटोल गुड़िया जैसी बेटी जन्म लेती है ।

आलोक बहुत खुश है , अक्षिता भी , लेकिन अचानक आलोक को लगता है की कब तक इस रिश्ते को निभाएगा , अक्षिता भी बार - बार शादी के लिए कहती है , वो चाहती है कि उसकी बेटी को पिता कि नाम मिले , समाज में एक पहचान मिले , जो आलोक देना नहीं चाहता ।

आलोक ख्यालों में खोया है ।

सर, सर क्या हुआ सर , मैं आपसे बहुत देर से बात कर रही हूं , आप कुछ बोलते क्यों नहीं ?

अ...क्षि.... त....तुम

कौन अक्षि सर , मै आस्था हूं सर , आपने असिस्टेंट के लिए इश्तिहार दिया था , वही पढ़कर आई हूं सर ,

सर प्लीज़ मैं बहुत मजबूर हूं , मुझे इस जाॅब की बहुत ज़रूरत है , आंखों में आंसु है आस्था के ।

ठीक है , तुम कल से काम पर आ जाना । जैसे आलोक उससे पीछा छुड़ाना चाह रहे हो ।

और उसके जाते ही आलोक एक फोन मिलाते हैं ।

हैलो , उधर से आवाज़ आती है ... कहिए बाॅस इतने सालों बाद कैसे याद किया । फिर कोई मामला सुलझाना है क्या ?

हीरा पहले ये बताओ , क्या तुमने वो मामला सुलझाया था या नहीं ?

कैसी बात करते हो बाॅस , भला हम आप से दग़ा करेंगे क्या , सब सैटल कर दिया था ।

और बच्ची ??

 वो भी सुलझा दिया था ।

लेकिन आलोक को चैन नहीं , कौन हो सकती है , वो सोचने पर मजबूर हैं ।

इधर आलोक के बेटे ने भी असिस्टेंट के लिए इश्तिहार देता है । और आस्था ही आलोक के बेटे ( अनीश ) का आफिस ज्वाइन कर लेती है ।

अगले दिन आस्था अपनी ड्यूटी पर आती है , उसे देखते ही आलोक फिर से उन बीते दिनों में खो जाते हैं ‌।

अक्षिता अपनी बेटी के भविष्य के लिए चिंतित थी , आलोक को फोन करके घर बुलाती है कि आज बहुत जरूरी काम है और तुम ज़रूर आना ।

जब आलोक अक्षिता के घर जाता है, अक्षिता ,साफ - साफ शब्दों में आलोक को अपनी बेटी को अपना सरनेम देने की बात कहती है ।

आलोक कहता है कि कल वो उन्हें कोर्ट में ले जाकर के कानूनी तौर पर शादी भी करेगा और बेटी को नाम भी देगा । लेकिन उसके दिमाग में कोई शैतान प्लान बना रहा है ‌ ।

अगले दिन अक्षिता के पड़ोस में शोर मच गया कि अक्षिता ने आत्महत्या कर ली है और बच्ची का भी कुछ पता नहीं , पड़ोसी आलोक को फोन करते हैं , वो ये समझते हैं कि आलोक अक्षिता का पति है और वो कहीं दूसरे शहर नौकरी करता है , इसलिए कभी - कभी आता है ‌।

आलोक आकर बहुत चीख- चिल्ला रहा है  .... हाए मेरी अक्षी ऐसा नहीं कर सकती , वो आत्महत्या क्यों करेगी , ये जरूर किसी की कोई चाल है, जो मेरी बच्ची को भी ले गया , जो भी है , मैं उसे ज़िन्दा नहीं छोडूंगा , नेस्तनाबूद कर दूंगा उसके पूरे खानदान को ।

आलोक बाबा अब आलोक सर बन गए , आलोक का बेटा अनीश बाबा भी आफिस में आने लगे हैं ।

सर , सर मेरा कैबिन कौन सा होगा सर , और मेरा काम क्या होगा सर ?

आलोक जैसे सोते से जागते हैं । इस तरह आस्था आलोक का आफिस भी संभाल रही है और अनीश का भी लेकिन इस बात को कोई नहीं जानता ।

एक दिन आलोक को दिल्ली से मुम्बई बिजनेस टूर पर जाना है और आस्था का भी साथ जाना ज़रूरी है , आस्था जाने के लिए मान जाती है ।

मुम्बई पहुंच कर आलोक जब होटल में , ( जहां दो रूम बुक करवाए थे ) जाते हैं , और रूम की चाबी लेते हैं तो कहते हैं कि .... मैडम का सामन भी उनके रूम में पहुंचा दो ।

ओ.के. सर , कहां है मैम ?

अरे ये कौन है आपके सामने , इनका सामान ले जाओ इनके रूम में ।

लेकिन सर हमें तो सिवाए आपके कोई नज़र नहीं आ रहा ।

आलोक बार- बार कहते हैं कि ये आस्था है उनके साथ , लेकिन आस्था किसी को नज़र नहीं आती ।

और उधर अनीश को भी अपनी असिस्टेंट आस्था से प्यार हो गया और वो उससे शादी करना चाहता है ।

आलोक वहां मुम्बई में बहुत परेशान हैं और जल्दी ही काम बीच में छोड़कर वापिस आ जाते हैं ।

घर आने पर अनीश आस्था से मिलवाता है और बताता है की वो अपनी असिस्टेंट आस्था से शादी करना चाहता है ।

आस्था को देखकर आलोक को हैरानी होती है , वो कहते हैं कि ये तो मेरी असिस्टेंट थी और मेरे साथ टूर पर थी , लेकिन अनीश बताता है कि आस्था उसके साथ थी , ये सुनकर तो आलोक का मन और घबराता है , कि ये सब क्या हो रहा है , लेकिन वो किसी से कुछ नहीं कहता ।

आलोक को रात को चैन नहीं आता , अगले दिन जब वो आफिस जाता है तो आस्था पहले से ही उसके आफिस, में मौजूद हैं ।

आस्था ये सब क्या है ,और कौन हो तुम ?

तुम तो मेरी असिस्टेंट बन कर काम कर रही थी , और उधर मेरे बेटे के साथ भी , ऐसा कैसे सम्भव हो सकता है ।

आस्था एक भयानक हंसी हंसती है और धीरे- धीरे अपना रूप परिवर्तित करती है ।

अब आलोक के सामने आस्था नहीं अक्षिता खड़ी है 40 - 45 साल की उम्र , बालों में कहीं -कहीं सफेदी झलक रही है ।

अ... क्षि....ता , त...... तु.... तुम ??  तुम ज़िंदा हो ? तुमने तो आत्महत्या की थी ना ।

 इसका मतलब तुम जिंदा हो ।

लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है, मैंने इन्हीं हाथों से दाह - संस्कार किया तुम्हारा , और हमारी बच्ची कहां है , क्या किया तुमने उसका ?

ये तुम मुझसे पूछ रहे हो ? क्या तुम नहीं जानते कि तुम्हारा भेजा हुआ , गुण्डा ही मुझे मारकर आत्महत्या का दृश्य बना गया ।

और जानते हो , उसने मेरी फूल सी बच्ची का क्या किया , उसे एक कोठे पे बेच दिया , आज उसकी नथ उतरवाई है ।

कहते - कहते रो पड़ी अक्षिता , मां हूं ना नहीं देख सकती बेटी को नरक में ।

अक्षिता मैं मानता हूं मैंने तुम्हें मरवाने की सुपारी दी थी और बच्ची को भी मारने के लिए ही कहा था , मैं तुम्हारा गुनहगार हूं , जो चाहो मुझे सज़ा दो , मुझे इस बात को लेकर बाद में बहुत पछतावा हुआ था , लेकिन समय हाथ से निकल चुका था , अब कुछ भी नहीं हो सकता था ।

लेकिन अब जो तुम कहोगी मैं करूंगा , मैं अपनी बच्ची को कहां ढुंढु , मुझे कोई रास्ता बताओ , मैं अपने किए का पश्चाताप करना चाहता हूं ।

अक्षिता , आलोक को उस कोठे पर ले जाती है , और आलोक अक्षिता और अपनी प्यार की निशानी को उस वेश्या से मुंह मांगी कीमत देकर खरीद लेता है ।

उसे अपने साथ घर लाता है ..... बेटी तुम घबराओ नहीं ये तुम्हारा ही घर है , और बेटे और पत्नी को सब कुछ बता देता है ।

फिर कानूनी तौर पर उसे अपनी बेटी स्वीकारता है और उसका नाम अक्षिता रखते हैं ‌और अक्षिता अपनी बेटी को उसके घर पहुंचा कर खुशी - खुशी वापिस अपनी दुनियां में लौट जाती है ।

आज एक मां की आत्मा को शांति मिल गई , और आलोक की पलकें खुशी से भीग गई ।

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Prem Bajaj

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