बेरूख़ी उनकी

बेरूख़ी उनकी

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Prem Bajaj
Prem Bajaj 20 Dec, 2020 | 1 min read

भंवरे सा शौंक की आदत नहीं है हमें

हम तो लज़्ज़ते -इश्क का शौक़ रखते हैं ।


कटी है ज़िन्दगी इन्तज़ार में उनके फिर

भी रंज नहीं उनकी बेरूखियत का

दिल ही दिल में जलते रहे हम

लब से उफ़ तक ना निकाली ।


वो बेवफ़ा ऐसे निकले कि हमारे ही मकान

पर कब्र बनाने का उन्होंने एलान कर दिया ।


निकले थे हम उनकी महफ़िल से अश्कों से भरी निगाह लेकर ,

एक बार भी उन्होंने आवाज़ ना लगाई,

हम देखते रहे फिर भी मुड़ - मुड़कर ।


किया फिर भी इन्तज़ार चांदनी रातों

 में , एक आस थी कि वो आएंगे

 कब्र पे मेरी फूल लेकर ।

ना ही वो आए ना उनका पैग़ाम आया

एक आखिरी गुज़ारिश है उनसे

अगर मिल जाएं हम किसी मोड़ पर

तो देख कर यूं नज़रें मत चुराना ।


बस देखा है कहीं तुम्हें इतना कह

के गले लगाना जी उठेंगे हम

तेरे अधुरे इश्क में भी पूरा जी लेंगे हम ‌।

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Prem Bajaj

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