इश्क समन्दर

होंगी इश्क की भी कुछ मजबुरियां

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Prem Bajaj
Prem Bajaj 05 Oct, 2020 | 1 min read

ए खुदाया इतना संगदिल सनम ना बनाना किसी को

जितने संगदिल बन गए हम उनसे दूर होते - होते ।।


इश्क का समन्दर हमने देखा उनके नैनों में

अपने आखिरी समय में दुनियां से विदा होते - होते ।


कोई रही होगी मजबूरी उनकी भी जिसे ना समझे हम

वरना इतने संगदिल वो ना थे कि वो हमारे ना होते ।


वो चाहते रहे दिल ही दिल में हमें , और हमने चाहा

कि वो गाएं हमें शब्दों की माला में पिरोते - पिरोते ।



थक गए उन्हें हम ढूंढ -ढूंढ कर सारे जहां में जो चीर

 कर देखा दिल तो पाया उन्हें वहीं इन्तज़ार करते-करते ।


मैं कैसे करता ब्यां अपने इश्क की कहानी उनसे

अच्छा होता वो खुद ही समझते , और महसूस करते ।


जिसे पाने के लिए खाई ठोकरें हमने , आज वही आए

खुद दर पे हमारे शोहरत अपनी नीलाम करते-करते।


मौलिक एवं स्वरचित

प्रेम बजाज, जगाधरी ( यमुनानगर )

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Prem Bajaj

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