कदम बढ़ाते रहे

दमे- आखिर तक मोहब्बत निभाते रहे

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Prem Bajaj
Prem Bajaj 05 Oct, 2020 | 1 min read

बिना रूके मोहब्बत की राह में कदम हम बढ़ाते रहे

पैरों में बंधते ही बंदिशों की जंजीरें हम छटपटाते रहे ।


बहृर , शेर, मतला, मकता का अर्थ मालूम नहीं हमें

फिर भी वो ज़ालिम , ग़ज़ल हमसे लिखवाते रहे ।


हाल - ए - दिल हम भी सुनाते उन्हें , मगर वो बिन

बोले चल दिए , और हम बैठे आंसू यूं ही बहाते रहे ।


नाज़ुकी उनके लबों की क्या कहिए , जैसे पंखुड़ी

गुलाब की , हवा में लहरा के चुम्बन हमें सताते रहे ।


माना कि हर पल रहती है दिल में सूरत तुम्हारी

आंखों से दूर जाकर क्यों आप यूं हमें तरसाते रहे ।


बड़े शौक से सजाई थी महफ़िल हमने दिल की

वो ना आए ,हम दिल को झुठी तसल्ली दिलाते रहे ।


ना समझे सके कभी आप * प्रेम* के प्यार को 

हम तो दमें-आखिर तक मोहब्बत निभाते रहे ।



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Prem Bajaj

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