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गीत गाता हूं मैं

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Prem Bajaj
Prem Bajaj 15 Oct, 2020 | 1 min read

भटकती है ज़िन्दगी वीराने में फिर भी गीत गाता रहता हूं मैं

विरह- गीतों से उर में मचलते अरमानों को भरमाता रहता हूं मैं ।


मन में उठी हूक में ना जाने कितनी छुपी हुई पीड़ा है

समझाने  को उस पीड़ा को नीर बहाता रहता हूं   मैं  ।


तड़प उठती है ज़िन्दगी मेरी स्मृति की कसक उसकी पा कर

दी मुझको जिसने पीर आभार उसका जताता रहता हूं मैं ।


बची - खुची नजदिकियां  भी खत्म हो गई अब तो

उदासियों से भरी ज़िन्दगी में भी बहार लाता रहता हूं मैं ।


व्यथा  * प्रेम* के नयन का नीर बन कर बह रही है

फिर भी हर पल देखो बेवजह ही मुस्कराता रहता हूं मैं ।


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Prem Bajaj

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