मधुशाला

इश्क की मय

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Prem Bajaj
Prem Bajaj 05 Oct, 2020 | 1 min read

 डूबना चाहता हूं तेरी आंखों की हाला में, भीड़ लगी है मधुशाला में

नहीं प्यास मुझे बोतल की डूबना है तेरी आंखों की मधुशाला में ।


घर में खाने को दाना नहीं क्या करूं मैं ऐसी नशे की लत का

भूखे मर जाएंगे बच्चे मेरे ,  मैं अगर चला गया मधुशाला में ।


ग़र देना था किसी ग़रीब को सहारा तो देते रोटी का टुकड़ा

क्यों कर मासूमों की ज़िंदगी को ख़राब सबको धकेला मधुशाला में ।


बच्चे मेरे भूखे प्यासे घर-घर मांग रहे , दूध और टुकड़ा रोटी का

मैं कैसा निष्ठुर बन गया , बुझाने अपनी प्यास जा रहा मधुशाला में ।


आज किसी मन्दिर-मस्जिद में जाने की मनाही है * प्रेम* को

नहीं कोई मना कर रहा मुझे आज जाने को मधुशाला में ।

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Prem Bajaj

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