गया वक्त

वक्त

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Prem Bajaj
Prem Bajaj 05 Oct, 2020 | 1 min read

वक्त - वक्त की बात है , ना जाने कब क्या मोड़ ले ले ये वक्त ,

रेत तो ठहर जाती है पर भर के लिए हाथों में 

वक्त निकल जाता है पानी की तरह ,जैसे पानी नहीं ठहर

 सकता हाथों में , वक्त भी कहां ठहरा कभी किसी के लिए ।



जाने क्यों सताता है वक्त , हाथ से निकल-निकल जाता है वक्त

फिर लौट कर क्यों ना आता है वक्त , हाथ से निकला जाता है वक्त ।


आया बचपन खेल खिलाया , चला गया फिर लौट के ना आया

उस वक्त की यादें बताएं , जो कभी ना फिर लौट के आए ।


आइ जवानी मस्ती छाई , वो भी तो ना फिर लौट के आई

क्यों है उसकी याद आई , जो है गए वक्त की परछाई ।


उम्र ढली झुर्रियां पड़ी , बिमारियों की लगी झड़ी , कहीं शुगर

 कहीं बी.पी. , कहीं कोई और प्रोब्लम खड़ी , आंखों पे चश्मा

दिमाग पे जाला , कैसा आया वक्त निराला ।


क्यों आया है ये वक्त ,क्यों ना आता लौट के वक्त

गया वक्त ना पकड़ा गया , मोह माया में मैं जकड़ा गया ।


अब भी वक्त है पागल मनवा कल की चिन्ता कर लें तु

नाम का ख़ज़ाना भर लें तु , नाम का ख़ज़ाना भर लें तु ।

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Prem Bajaj

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