मन की अधूरी बात

गया वक्त लौट कर नहीं आता

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Prem Bajaj
Prem Bajaj 11 Oct, 2020 | 1 min read


मौन हूं मैं आज , आखिरी सांस चल रही है , मुख से टुटे-फूटे शब्द निकल रहे हैं ।

पति , बेटा , बहु , सब पूछ रहे हैं ,

क्या कहना चाहते हो , पूरी करो अपनी बात , अधुरी मत छोड़ो , कुछ तो कहो ।

यही लोग पहले कभी बात पूरी भी नहीं करने देते थे , बोलने से पहले ही मुंह पर

ताला लगाया जाता था ।

अजी सुनो ना ! दु:ख - सुख की , अपने मन की कोई परेशानी किससे कहूं जा के ,

 आप तो सुन लिजिए कभी मेरी पूरी बात , जब भी बात करने लगती हूं , उठकर चल देते हो ।

यार ! आशा कितना बोलती हो तुम , थकती नहीं क्या बोल - बोल कर , कह कर अधुरी छोड़

देते बात मेरी ।

बेटा ! ज़रा सुनो तो मेरी तबीयत ठीक नहीं , मुझे लगता है कि ...

ओफ़ो मां कितना काम है मुझे , आपको जो कहना है पापा से कहो ,मैं लेट हो रहा हूं , मुझे

एक मीटिंग में जाना है ।

बहु ! क्या तुम्हारे पास वक्त है , मुझे तकलीफ़ है , ज़रा सुनो , क्या करूं समझ नहीं . ....

मांजी मेरे आफिस का सारा काम अभी पड़ा है , रात को भी सिर में दर्द था पूरा नहीं कर पाई ,

 मेरे पास वक्त नहीं आपकी बातों के लिए , हां हो सके तो मुझे नाश्ता ले दिजिए , यही रूम में

ही , मुझे काम पूरा करना है ।

मैं घुटती रही , तरसती रही कि कोई सुने मेरी अधूरी बात , आज सब सुनने को तैयार हैं ,

मगर ना मुझमे हिम्मत है बोलने की और ना वक्त है ।

वाह रे इन्सान !

     # सदा मन में ही रह जाती मेरी अधूरी बात

       कभी किसी ने ना करने दी वो पूरी बात

     आज लफ़्ज़ नहीं दे रहे साथ जब तब सब

सुनना चाहते हैं मेरे मन की अधूरी बात #

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