दास्ताने- मोहब्बत

मोहब्बत की दास्तां

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prem bajaj
prem bajaj 23 Dec, 2021 | 1 min read

ज़िन्दगानी का ना पूछो हमारी, किस कदर बर्बाद हुए,

हराम हुई ज़िन्दगी कुछ इस तरह, फिर ना आबाद हुए।


तंग हैं ज़िंदगी से मगर फिर भी जीए जा रहे हैं हम,

होंठों पर रखते हैं हंसी,ऑंखो में ऑंसू पिए जा रहे हैं हम।


 इस तरह ना लुटे कोई, जिस तरह हम लुटे प्यार में तेरे,

प्यार किया था तुमसे, गुनाह तो नहीं किया दिल ने मेरे।


इस तीरे-नज़र से देखा आपने हम कत्ल सरेआम हुए।

ग़म-ए-हस्ती तुम क्या जानो, दिल के टुकड़ों तमाम हुए।


आप हमारी दास्तान-ए-मोहब्बत की किस्सों के अनुवाद हुए।

कोई आश-उम्मीद ना रहे तुम्हें भी, जैसे हम निराशाबाद हुए।


 दग़ा हर बार मिले तुम्हें, तु भी तरसे विसाल-ए-यार को,

 हम जैसा ना कोई मिलेगा जो खुदा बनाएगा यार को। 


मौत से हो जाए नफ़रत,नेमते ज़िंदगी की ना नसीब हो तुम्हें, 

हो खाना-बर्बाद इस तरह, जिस तरह किया बर्बाद हमें।


जीओ तुम भी उस आग में , हम गर्दा - बाद हुए जिसमें,

*प्रेम* से रहे खाली,उस प्याले की मानिंद ना हो मय जिसमें।


गर्दा बाद ( वीरान, उजाड़)


प्रेम बजाज ©®

जगाधरी ( यमुनानगर)

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