सपनों की दुनियां

सपने

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prem bajaj
prem bajaj 18 Jul, 2022 | 1 min read






रंग-बिरंगी सुंदर नज़ारों सी चमकती ये दुनियां, कितनी मन को लुभाती है ये दुनियां।


ढलते ही शाम जगमगा उठती है रौशनी ये जैसे,

 क्या किसी की ज़िन्दगानी भी चमकती है ऐसे।


पानी की लहरों पर करती अटखेलियां ये रौशनी,

चांद की चांदनी को भी लजाती है ये रौशनी।


सपनों का शहर है ये, यहां बिक जाती हर शय है,

अहसास, अरमान भी बिकते, खरीदार बहुत मिलते यहां।


दरिया के इन दो किनारों से हम हैं, जो मिल कर भी 

मिल ना पाते हैं, लहरों को मिला कर खुद दूरी सह जाते हैं।


वो देखो ढलता सूरज भी देता आमंत्रण मिलन का, 

ना मिल कर भी जिस तरह मिलते धरती अम्बर, हमारा मिलन भी है उसी तरह का।


आओ बांध लें हम भी इस पुल की तरह कोई सेतू जो ना कर पाए जूदा हमें, सदा के लिए मिल जाएं हम।




प्रेम बजाज ©®

जगाधरी ( यमुनानगर)


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