मां की ममता

यह कहानी एक मां के संघर्ष की है जो विपरीत परिस्थितियों में भी हार नहीं मानती।

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Pragati tripathi
Pragati tripathi 14 Dec, 2019 | 1 min read

"कमला तू इन पैसों का क्या करेगी जो मेरे पास जमा करती हैं- मैंने पूछा"। दीदी मैं अपनी बेटी को अच्छी जिंदगी देना चाहती हूँ, उसे पढा - लिखा कर बड़ा आदमी बनाना चाहती हूँ, उसी के लिए तो जी रही हूं वरना जिंदगी में रखा ही क्या हैं। आप तो जानती हैं की मेरा पति अपने कमाए सारे पैसे की दारू पी जाता हैं और अगर ये पैसे भी मैं घर ले जाऊंगी तो इसकी भी दारू पी जाएगा, आपने एक बार मुझे कहा था की बैंक में जमा करूं लेकिन वो सब मुझसे नहीं होगा। मुझे सबसे अधिक विश्वास आप पर हैं, आप हमेशा मेरा और मुनिया का भला चाहती हैं इसलिए मैं अपने सारे पैसे आपके पास जमा करती हूं कल को मुझे कुछ हो भी जाए तो मुझे मुनिया की चिंता नहीं रहेगी। कमला हर महीने के पैसे मेरे पास ही जमा करने लगी।
कुछ दिनों से कमला बीमार चल रही थी। मैंने बोला आराम कर तो बोली दीदी ये सब तो लगा ही रहता हैं और फिर काम पर आ जाती, एक दिन चक्कर खाकर गिर पड़ी। मैंने उसे डांटते हुए कहा - कमला तेरी सेहत दिन ब दिन गिरती जा रही हैं, किसी अच्छे डॉक्टर को दिखा नहीं तो चल मैं तुझे दिखा देती हूं। कल आठ बजे आ जाना डाॅ स्मिता गुप्ता से तुझे दिखा दुंगी... मेरी बात काटते हुए कहने लगी - नहीं दीदी आप चिंता मत करिए मैं कल ही डाॅक्टर को दिखा लूंगी। पक्का ना... हां दीदी पक्का।देख तू अपना ख्याल नहीं रखेंगी तो मुनिया का ध्यान कैसे रख पाएंगी, कुछ दिन आराम कर ले,जब पूरी तरह से ठीक हो जाना फिर काम पर आ जाना।
कमला मेरी बात मानकर कुछ दिनों की छुट्टी पर चली गई। दस दिन बाद उसने फोन कर कहा - दीदी मैं अब ठीक हो गयी हूं कल से काम पर आती हूं... मैंने कहा ठीक हैं कल से काम पर आजा। उस महीने में दस दिन काम किया तो मैंने पूरे महीने के पैसे दिए, मेरा धन्यवाद कर बोली - ये और कुछ और पैसे लाई हूं इसे भी रख लिजिए। दीदी मेरे कितने पैसे हुए होंगें, एक बार मुझे बता सकती हैं क्या? हां बिलकुल बता सकती हूं, मैंने उसके सारे पैसे गिने तो सब मिलाकर पचास हजार हुए। जब मैंने उसे बताया तो वो बहुत खुश हुई और मन ही मन बूदबूदाते हुए बोली.. अब मैं चैन से मर सकती हूं। मैंने उसे डांटा भी कि ऐसा क्यों बोल रही हैं... तो वो हंसती हुई चली गई। आज एक सप्ताह हो गये कमला को काम पर आए, मुझे बड़ी चिंता हो रही थी.. कितनी बार उसे फोन मिलाया लेकिन उसका नंबर बंद बताता..... इसी उहापोह में पड़ी थी तभी दरवाजे पर दस्तक हुई देखा तो एक लड़की थी। मैं उससे कुछ पूछती, इससे पहले उसने मुझे एक खत थमा दिया। 'अब इसका भविष्य आपके हाथ में हैं, आ... कमला'। तेरी माँ कहाँ हैं?  वह नहीं रही माँ को कैंसर था। मैं हैरान की सवाल मेरे जेहन में घूमने लगे.. मुझे बताया क्यों नहीं मैं उसका इलाज कराती...उसने मुझसे झूठ बोला..अपना इलाज नहीं कराया और सारे पैसे बेटी के भविष्य के लिए जमा किया और खुद मौत को गले लगा लिया....कमला के कसे वो शब्द मेरे कानों में गूंजने लगे.. आखिर बेटी के लिए ही तो जी रही हूं।



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