तू फिर मुस्कुराएगा

वर्तमान परिस्थिति पर प्रहार करती हुई कविता।

Originally published in hi
Reactions 0
1550
Pragati tripathi
Pragati tripathi 20 Apr, 2020 | 1 min read

कभी प्रकृति ऐसे ही मुस्कुराती होगी

कभी फूल ऐसे ही खिलखिलाते होंगे

कभी भंवरे ऐसे ही गुनगुनाते होंगे

कभी हवाएं ऐसे ही शोर मचाते होंगे

कभी मोर ऐसे ही नृत्य करते होंगे

कभी नदियां ऐसे ही कल-कल बहती होंगी

हां ये सब कभी होता होगा.. क्योंकि तब इंसान ने इतनी तरक्की नहीं की थी।

तब वो कम में गुजारा करना जानता था

धीरे-धीरे महत्त्वकांक्षी बन प्रकृति का हनन कर विजय पा लिया

तब समझ बैठा खुद को सर्वश्रेष्ठ

गर्व तो रावण का भी ना रहा

फिर इंसान की क्या बिसात

अब बैठे है घरों में खुद को बंद करके

डरकर एक महामारी से

जो पल में इंसानों को आईना दिखा रहा है

है वो भूखा दानव जो इन्हें कच्चा चबा रहा है

कुछ समझ गए समय की चाल को

कुछ अभी भी जा रहे, काल के गाल में

वक्त है आत्ममंथन का, अपने किए को बदलने का

ये प्रण कर तू नहीं करेगा प्रकृति से छेड़छाड़

तभी वो सुनहरा कल फिर से आएगा

हे मानव तू फिर से मुस्कुराएगा......

#poetry contest

0 likes

Published By

Pragati tripathi

pragatitripathi

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.