प्राकृति की गोद में

अब वक्त आ चला प्राकृति संग ढलने का

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Pragati gupta
Pragati gupta 05 Jun, 2020 | 1 min read

प्राकृति की सेवा मे कुर्बान तन मन और जान

 ये धरती मां हमारी , हम इसकी संतान ।

सह बोझ हमारा आदर से ये पालतीं 

प्राकृति संग मिल हमारा जीवन ये सवांरती ।

 हमें दे शिक्षा जीवन के नए रंग रूप की 

 दुनिया के विस्तार मे  ये हमें निहारतीं 

वृक्षों को पाल अपनी गोद में

हमें अपना ऋणी बनाती 

शुद्ध हवा देता वो वृक्ष हमें

जिन पर प्राकृति अपनी ममता लुटातींं

सागर की लहरों मे उठने लगते जब तूफान कभी

तब पर्यावरण की रक्षा हमें सतातीं

न रहता हमारा ध्यान साल भर प्राकृति पर

पर जब जरूरत हो खुली हवा 

तब वृक्षों की डालियाँ हमें पुकारती 

पूछंती हजार सवाल वो कहकर अपनी दांस्ता 

तब हमारी गलतियां हमें सिखाती 

हरी भरी दुनिया में हम स्वस्थ बहुत हैं 

हमारे जीने के तरीके तो हम पर ही रूष्ट हैं 

नदियां का वो दूषित पानी

 फैलाती बीमारी कभी कोरोना कभी महामारी 

वक्त ये सम्भालने का हैं

प्राकृति के संग ढलने का हैं ।

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