"जन्म से लेकर अंत तक का सफर"

एक बेटी का जन्म से लेकर अंत तक का सफर कैसा होता है।ये मेरी कविता में बताया गया है।

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Poonam chourey upadhyay
Poonam chourey upadhyay 03 Sep, 2020 | 0 mins read

नन्ही परी थी,जब घर में तो,

अपने पापा की थी लाड़ कली।

थोड़ी सी बड़ी हुई तो,

भैया से मैं बहुत लड़ी।

शादी होकर जब ससुराल गयी तो,

सास ससुर की हर बात सुनी।

फिर आया पत्नी का किरदार,

पतिदेव की फटकार पड़ी।

जीवन में आया बहुत खुशी का पल,

जब एक दिन में माँ बनी।

सास बन गयी जब एक बहु की,

बातें मैंने भी की बहुत बड़ी बड़ी।

जब एक दिन बीमार हुई मैं,

किसी ने भी मेरी एक ना सुनी।

जब आया मेरे जीवन का अंत,

उस दिन मुझे ये सीख मिली।

सुनो सबकी करो मन की।।

सुनो सबकी करो मन की।।


@पूनम चौरे उपाध्याय

मौलिक, स्वरचित


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Poonam chourey upadhyay

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