रियल(real) हीरो या रील(reel) हीरो

क्या भारतीय फिल्मों से हमारी युवा पीढ़ी प्रभावित होती हैं?

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Poonam chourey upadhyay
Poonam chourey upadhyay 26 Sep, 2020 | 1 min read
Indian Real Young Generation Film Reel

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि रील(reel) हीरो या रियल(real) हीरो वाली फिल्मों में जमीन आसमान का फर्क होता है।

एक तरफ जब भी मैं रीयल(real) कलाकारों की फिल्में देखती हूं जो कि रियल(real) बॉयोग्राफी पर आधारित होती है जैसे चक दे इंडिया,भाग मिल्खा भाग,मैरीकॉम,एम एस धोनी और भी कई,तो मेरे अंदर बहुत ही जज़्बा,जुनून और एक बहुत ही सकारात्मक सी सोच आती है।ऐसा लगता है मानो,काश मैं भी कोई ऐसा काम करूँ,जिसके जरिये मैं खुद की एक अलग सी पहचान बना सकूँ और अपने देश का नाम रौशन कर सकूँ।

जब मैं पद्मावत,मणिकर्णिका,बाजीरावमस्तानी,अनारकली,जोधा-अकबर वगरैह जैसी ऐतिहासिक फिल्में देखती हूँ, तो इन फिल्मों से हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है और कई सारी जानकारियां भी मिलती है। कई बार हम कुछ बातें किताबों में नहीं पढ़ पाते जो हम फिल्में देखकर सीख पाते है।विशेष रूप से आजकल के बच्चे और हमारी युवा पीढ़ी भी रियल(real) कहानियों को खूब पसंद करती है।

ये तो बात हो गयी रियल(real) कहानियों और रियल(real) कलाकारों की जिनपर बनाई फिल्में हमें उनकी असली ज़िन्दगी की तरफ ले जाती हैं,उनके द्वारा किये गए प्रयासों से हमें बहुत प्रेरित भी करती हैं।ऐसी फिल्में हमारी युवा पीढ़ी को बहुत प्रभावित करती हैं और उनके अंदर कुछ अच्छा करने का आत्मविश्वास पैदा करती हैं।

वही दूसरी तरफ हम बात करे रील(reel) फिल्मों की या उनसे जुड़े कलाकारों की,तो मैं एक छोटा सा उदाहरण से समझना चाहूंगी कि जब मैंने संजू फ़िल्म देखी थी जो कि संजय दत्त की बॉयोग्राफी थी।उस फिल्म को क्यों फ़िल्माया गया? संजय दत्त तो रील(reel) हीरो ही है ना,ना कि रियल(real) हीरो।मुझे लगता है ये फ़िल्म से उनकी इमेज को अच्छी या सुधारने का प्रयास करने के लिए फ़िल्माया गया था।इसके अलावा दूसरी फिल्में जो कि थोड़े समय के मनोरंजन के हिसाब से ठीक है पर ये फिल्मों से हमारी युवा पीढ़ी प्रभावित नहीं होती है ना ही ऐसी फिल्में समाज तक कोई अच्छा संदेश पहुँचा पाती हैं।

यदि भारतीय फिल्में रियल(real) कहानियों पर आधरित हैं तो मेरे दृष्टिकोण से हमारी युवा पीढ़ी बहुत प्रभावित होती हैं,परंतु यदि फिल्में रील(reel)कहानियों पर आधारित हैं तो हमें एक मनोरंजन के तौर पर देखना चाहिए।


@पूनम चौरे उपाध्याय

मौलिक, स्वरचित, अप्रकाशित




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