दाग

अब और नहीं

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Pallavi verma
Pallavi verma 29 May, 2020 | 1 min read



# शीर्षक -: दाग


"नहीं! ,नहीं !,नहीं करूंगी किसी से बात ! मत मारो! मुझे मत मारो, अच्छा कम से कम जलाओ तो मत ! सुबह सब पूछते हैं ! "नहीऽऽऽऽऽ,

आऽऽऽऽऽऽ नहीऽऽऽऽऽऽ


"ये माँस जलने की बास अच्छी लगती है, मुझे ....और ये सुंदरता किसके लिये... सहेजना चाहती है, हेंऽऽऽ बोलऽऽऽ" ।

इसके साथ ही दामोदर ने जलती सिगरेट रीना के हाथ में घुसा दी।

रोज़ की तरह दामोदर प्रताड़ना देकर सो चुका था । रीना जानती थी कुछ लोग ऐसे ही कसैले स्वभाव के होते हैं, फिर दामोदर तो हीन भावना से ग्रसित इंसान था,चेचक दाग से भरा चेहरा ,निकली हुई आँख और मोटी भद्दी नाक ।अपनी सुंदर पत्नी पर शक करने वाला सनकी आदमी।


आज रीना ने तय कर लिया था कि अब और सहन नहीं किया जा सकता ।

मुझे सबक सिखाना ही होगा ।

रात को कुंठित दामोदर को रीना पर हाथ उठाने की कोई वजह नहीं मिल रही थी। परेशान हो, वह शराब पीने लगा और फ़िज़ूल ही गाली गलौज करने लगा।

रीना पर हाथ उठाने ही वाला था कि,रीना ने उसके हाथ से जलती सिगरेट लेकर उसके गले में रख दी ।

अचानक हुए हमले से दामोदर संभल नहीं पाया ।रीना ने फुर्ती से उसका हाथ पकड़ा और जलती सिगरेट से फिर से दाग दिया,अब दामोदर भय से कांपने लगा,रीना ने पूछा "अपने माँस के जलने की बास कैसी लगी ? ...अरे तुम बदसूरत हो तो, इसमे मेरा क्या दोष" ? 

"चरित्र पर कीचड़ उछाल कर,मार कर भी संतुष्टि नहीं मिली ,तो मुझे कुरुप बनाने पर उतर आये, पूरा शरीर ही सिगरेट से दाग दिया" ।

"लो अब ! सूंघो अपने जले दाग को" ,जलती सिगरेट लगते ही दामोदर दर्द से छटपटा गया। उसने रीना का हाथ रोकने की कई नाकाम कोशिशें की।

दामोदर ने गिड़गिड़ाते हुए अपनी गलती स्वीकार की,मिन्नते की,माफ़ी माँगी । 

असुरक्षा और हीन भावना से ग्रस्त दामोदर को उसी हालत में छोड़ रीना, अपना बैग पैक करते हुए,अंधेरे के खत्म होने और सुबह की उजली किरण का इंतजार करने लगी।


पल्लवी वर्मा 

स्वरचित

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Pallavi verma

pallavi839570

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Kumar Sandeep · 3 years ago last edited 3 years ago

    उत्कृष्ट सृजन मैम

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