जनता ही हैं अंतिम निर्णायक

गौरतलब है कि किसानों को कौन गुमराह कर रहा है यह तो पता नहीं लेकिन यह जरूर कह सकते हैं कि किसान हित में जितने कदम, जितनी योजनाएं मोदी सरकार ने लागू की वह अब तक कोई नहीं कर पाया हैं लेकिन जो शासन करते हैं, उन्हें यह अवश्य देखना चाहिए कि शासन के प्रति जनता की प्रतिक्रिया कैसी है क्योंकि अंत में जनता ही अंतिम निर्णायक है।

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Nidhi Jain
Nidhi Jain 12 Dec, 2020 | 0 mins read
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गेहूँ न ही फैक्ट्री में उपजते हैं, कम्प्यूटर न ही धान बनाता हैं, जिस दिन देश यह समझ जाएगा उस दिन हकीकत में किसानों का मान बढ़ेगा। सब्ज़ी सस्ती सब को चाहिए लेकिन अगर किसान मरे तो शिकायत भी होती है। बहरहाल एक समय वह भी था जब देश के अन्नदाता नोटों पर हुआ करते थे परन्तु आज तो वह सड़कों पर बैठने को मजबूर हैं। सवाल तो यह उठता है कि आज इक्कीसवीं सदी में भी भारत को बंद की राजनीति से आगे नहीं बढ़ जाना चाहिए? क्या बंद करने की बजाय शुरू करने पर ध्यान नहीं देना चाहिए? देश बंद, राज्य बंद, सड़क बंद, बाज़ार बंद, इससे क्या हासिल होगा, इससे सिर्फ हमारा यानी देश का ही नुकसान होता है। हमारे देश की अर्थव्यवस्था ही पीछे होगी। कई न कई अंग्रेजों के ज़माने में तो यह रणनीति ठीक भी थी लेकिन यह चिट्ठियों का नहीं, ईमेल का ज़माना है, नारों का जमाना नहीं वाईफाई का हैं। इसलिए आज देश भर के संगठनों और राजनीतिक पार्टियों को यह सोचना चाहिए कि आंदोलनों को आधुनिक और सकारात्मक कैसे बनाया जा सकता है। 1947 में जब भारत आजाद हो गया था व 1948 में महात्मा गांधी की हत्या कर दी गई थी और यह अध्याय यहीं समाप्त हो गया था लेकिन आजादी के बाद भी भारत में आंदोलनों का सिलसिला समाप्त नहीं हुआ। आंदोलन तो आज भी देश में जारी हैं, लोग तो आज भी अपने हक की लड़ाई सड़कों पर आके लड़ रहें हैं अर्थात ऐतिहासिक दस्तावेज़ों से यह खुलासा हुआ है कि भारत में बंद और हड़ताल की शुरुआत 1862 में आरम्भ हुई थी। जिसके बाद से हड़ताल और बंद का यह सिलसिला ऐसे ही चलता रहा और आज तक चल रहा हैं। माना जाता है कि राजनैतिक कारणों से पहली हड़ताल वर्ष 1908 में मुबई में की गई थी। 24 जून 1908 को ब्रिटिश सरकार की पुलिस ने बाल गंगाधर तिलक को देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया था व इसके विरोध में बॉम्बे में काम करने वाले सैकड़ों कर्मचारी हड़ताल पर चले गए थे और विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए थे। हालांकि 1990 से लेकर 2018 तक पूरी दुनिया के मुकाबले सबसे ज्यादा प्रदर्शन भारत में हुए हैं। 18 वर्षो के बीच प्रदर्शनों में हिंसा भी हुई। अधिकांश विरोध प्रदर्शन किसी न किसी मौके पर हिंसक हो ही गए थे। सबसे ज्यादा हिंसक प्रदर्शन वर्ष 2001, 2008 और 2017 के दौरान हुए। गौरतलब है कि किसानों को कौन गुमराह कर रहा है यह तो पता नहीं लेकिन यह जरूर कह सकते हैं कि किसान हित में जितने कदम, जितनी योजनाएं मोदी सरकार ने लागू की वह अब तक कोई नहीं कर पाया हैं लेकिन जो शासन करते हैं, उन्हें यह अवश्य देखना चाहिए कि शासन के प्रति जनता की प्रतिक्रिया कैसी है क्योंकि अंत में जनता ही अंतिम निर्णायक है।



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