एक सिपाही जो मरणोपरांत भी देश सेवा में रत है। अंतिम भाग

एक मृत सिपाही की कानी

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Moumita Bagchi
Moumita Bagchi 21 Jun, 2020 | 1 min read

कहा जाता है कि सपने में ही उन्होंने इच्छा जाहिर की थी कि उनकी समाधि बनाई जाए। उनकी इच्छा का मान रखते हुए उनकी एक समाधि बनवाई गई है। लोगों में इस जगह को लेकर बहुत आस्था थी लिहाजा श्रद्धालुओं की सुविधा को ध्यान में रखते हुए भारतीय सेना ने 1982 में उनकी समाधि को 9 किलोमीटर नीचे बनवाया है, जिसे अब बाबा हरभजन मंदिर या " बाबा मंदिर" के नाम से जाना जाता है। हर साल हजारों की संख्या में लोग यहाँ दर्शन करने आते हैं। उनकी समाधि के बारे में मान्यता है कि यहाँ पानी की बोतल कुछ दिन रखने पर उसमें चामत्कारिक गुण आ जाते हैं और इसका 21दिन सेवन करने से श्रद्धालु अपने रोगों से छूटकारा पा जाते हैं। कहा जाता है कि मृत्यु के बाद भी बाबा हरभजन सिंह नाथू ला के आसपास चीन सेना की गतिविधियों की जानकारी अपने मित्रों को सपनों में देते रहे, जो हमेशा सच साबित होती थी। और इसी तथ्य के आधार पर उनको मरणोपरांत भी भारतीय सेना की सेवा में रखा गया है। उनकी मृत्यु के 52 वर्ष हो चुके हैं, लेकिन आज भी बाबा हरभजन सिंह की आत्मा भारतीय सेना में अपना कर्तव्य निभा रही है। बाबा हरभजन सिंह को नाथू ला का हीरो भी कहा जाता है। सन् 2004 में हमें बाबा मंदिर जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। हमने वहाँ पर देखा कि बाबा मंदिर में बाबा के जूते एवं बाबा के व्यवहार के अन्य सामान रखा गया है। भारतीय सेना के जवान चौकीदारी करते हैं। रोज़ाना उनके जूते पर पालिश और वर्दी को साफ किया जाता है। उनके लिए विस्तर भी लगाया जाता है। वहाँ तैनात सिपाहियों का कहना है कि साफ किए हुए जूतों में हर सुबह कीचड़ लगी होती हैं और उनके विस्तर पर सिलवटें देखी जाती हैं। जी हाँ, हमने भी ये सारी चीजें अपनी आँखों से देखी हैं। बाबा की आत्मा से जुड़ी बातें भारत ही नहीं चीन की सेना भी बताती है। चीनी सिपाहियों ने भी, उनको घोड़े पर सवार होकर रात को गश्त लगाने की पुष्टि की है। भारत और चीन दोनों देशों के सिपाही आज भी बाबा हरभजन के होने पर यकीन करते हैं। और इसलिए दोनों देशों की हर फ्लैग मीटींग पर एक कुर्सी बाबा हरभजन के नाम की भी रखी जाती है। सारे भारतीय सैनिकों की तरह बाबा हरभजन को भी हर महीने वेतन दिया जाता है। सेना के payroll में आज भी बाबा का नाम लिखा हुआ है। सेना के नियमों के अनुसार ही ऊनकी पदोन्नति भी होती है। अब बाबा सिपाही से कैप्टन के पद पर आ चुके हैं। हर साल उन्हें 15 सितंबर से 15 नवंबर तक दो महीने की छुट्टी दी जाती है और बड़ी श्रद्धा के साथ स्थानीय लोग और सैनिक एक जुलुस के रूप में उनकी वर्दी, टोपी, जूते और साल भर का वेतन दो सैनिकों के साथ, सैनिक गाड़ी में नाथू ला से न्यू जलपाईगुड़ी रेलवे स्टेशन लाते। वहाँ से डिब्रूगढ़ अमृतसर एक्सप्रेस से उन्हें जालंधर ( पंजाब) लाया जाता है। गाड़ी में उनके नाम का टिकट भी बुक किया जाता है। जालंधर से सेना की गाड़ी उन्हें उनके गाँव तक छोड़ने जाती है। वहाँ सबकुछ उनके माँ को सौंपा जाता है। फिर उसी आस्था और सम्मान के साथ उनके समाधि स्थल पर उनकी छुट्टी समाप्त होने पर उनके समाधि स्थल पर वापस लाया जाता है। लेकिन कुछ वर्ष पहले इस आस्था को अंधविश्वास कहा जाने लगा, तब से यह यात्रा बंद कर दी गई है। शायद, अब बाबाजी की माँ भी जीवित नहीं रही, अतः पुत्र को माँ से मिलने जाने की जरूरत भी समाप्त हो गई है। क्योंकि यहाँ जो भी होता है सब बाबा के इच्छानुसार ही। इस तरह की आस्था पर भले ही सवाल उठाया जाए और उसे अंधविश्वास का नाम दिया जाए लेकिन भारतीय सैनिकों का यह मानना है कि उन्हें यहाँ से शक्ति अनुभूत होती है और हर मुश्किल घड़ी में बाबा का सहयोग हमेशा मिला करता है।  

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Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • indu inshail · 3 years ago last edited 3 years ago

    True Di. Even I heard his so many stories and watch a documentary also.

  • Moumita Bagchi · 3 years ago last edited 3 years ago

    मैं गई थी बाबा मंदिर 2004 में। सच में, रोंगटे खड़े हो गए थे मेरे!!

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