प्रेम है पवित्र गंगाजल सा

प्रेम का आदि, मध्य और अंत सब पवित्र है।

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Moumita Bagchi
Moumita Bagchi 27 Jun, 2020 | 1 min read

चलो एकबार फिर निःस्तब्धता में खो जाते हैं,

चलो एकबार फिर मूक दर्शक बन जाते हैं

चलो एकबार फिर से पराए हो जाते हैं।

चलो एकबार फिर अपनी दुनियादारी में गुम हो जाते है,

बीसेक वर्षों के बाद,

एक और बार मिलने की आशा को

जीवित रखने के लिए।


तुम्हारा यों मिलना,

था कोई इत्तेफाक

या मेरे विगत जन्मों के

किसी सुकर्म का फल?

क्योंकि खोकर किसी को फिर से मिलना,

यूँ बेबजह तो नहीं हो सकता है, न?


परंतु स्थायीत्व कहाँ था

इस मिलन में ?

बिछड़ना- मिलना और फिर बिछड़ना

प्रारब्ध का कोई क्रूर मज़ाक सा

लगता है यही लिखा है केवल हमारी किस्मत में।



उस झिझक को दूर करने में,

औ इज़हार की हिम्मत जुटाने में

दिल में दबी भावनाओं को,

लबों तलक ले आने में

लगा दी थी

पूरे दो दशक हमने लेकिन।

पर शुक्र है कि

कह तो सके आखिरकार

हम एक दूजे से वह

जिसे कहने की चाह में

तड़प रहा था बरसों से हमारा अंतर्मन।


क्या हुआ जो देर हो चुकी थी,

वह बचपना नहीं शेष था,

जवानी का उन्माद भी

ढलने लगा था थोड़ा - थोड़ा।

परंतु दिल तो हमेशा

एक जैसा ही रहता है,

औ उम्र का उस पर

कोई असर नहीं पड़ता है!

और इस दिल पर तुम्हारा नाम

खुद चुका था

न जाने किस अनादि अनंत काल से ,

अब नहीं सकता निकल

किसी भी बहाने या वजह से।


याद आते है वे लम्हे,

जब अधिसूचना की मधुर आवाज से,

मेरी खुशनुमा हर सुबह हुआ करती थी।

और तुम्हारे शुभरात्री कहने से ही

मेरी रातें सोया करती थी।

वे ढेर सारी अनकहियाँ

जो मौखिक दस्त से अपने आप

निकल आती थी तुम्हारी उपस्थिति में।

हाथों की ऊंगलियाँ न थकती थी,

अविराम उन यादों को शब्द देने से।


आज स्तब्ध हो गई है,

हाथों की वे सारी ऊंगलियाँ ।

औ बेरोजगार भी हो गई है,

अपने मनपसंद काम से हटा दी जाने पर,

दुःखी हो मानो वे भी

ज़ार- ज़ार रोई है,

कुछ- कुछ मेरी ही तरह।


जमाने और मर्यादा के कठघरे में

सदियों से प्रेमी- युगलों को परखा गया है।

और कर्तव्य की चारदीवारी में

सदा उनको कैदी बनाया गया है।

परंतु कब तक चलेगा यूँ,

मुहब्बत का मात खाना?

औ झूठ द्वारा सच्चाई

का गला दबाया जाना?

दुनिया कब स्वीकार सकेगी

इस एक सामान्य सी बात को,

कि प्रेम का आदि हो या मध्य अथवा अंत

सब गंगाजल के समान पवित्र है!!


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