भीड़ से दूर

एकांत प्रेम, मौन-- फिर भी कितना मुखर सा।

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Moumita Bagchi
Moumita Bagchi 02 Feb, 2021 | 1 min read
Romance

भीड़ में तलाश रही थी

एक छोटा सा कोना एकांत का।

चारों ओर का शोरशराबा,

लोगों की तरह-तरह की बातें,

हॅसी और ठहाके के बीच

 शांति का, सुकून का,

थोड़ा सा ठहराव-

की चाहत थी मुझे।

तुमने तब ,इशारे से अपने पास बुलाया था,

अपनी बगलवाली सीट पर बैठ जाने की इच्छा जाहिर की थी हौले से।

फिर सरक गए थे जरा सा

मुझे वहाँ स्थान देने हेतु।

वह मेरा सपनों का वास,

तुम्हारे पास,

क्षणभर-

बैठकर लगा,

"गर फिरदौस रूहे जमीं अस्त

हमीनस्तो, हमीनस्तो हमीनस्तो।।"

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