अरेन्ज्ड cum लव मैरिज

एक अनोखी शादी, इसे आप लव कहोगे या एरेन्ज्ड?

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Moumita Bagchi
Moumita Bagchi 10 Nov, 2020 | 1 min read

ऋताभरी को दुल्हन के रूप में सजाने के लिए उसकी दोनों सहेलियाँ शुभ्रा और रुचिका मध्याह्न भोजन के कुछ समय पश्चात् से ही जुटी हुई थी। आज उनकी बेस्ट फ्रेन्ड की शादी थी। तीनों एक दिल और तीन जानें थे। मतलब कि वे हमेशा साथ रहते थे। उनके विचार, पसंद और ग्रेजुएशन का विषय सभी एक समान था। रुचिका और शुभ्रा दोनों ने ब्यूटिशीयन का कोर्स कर रखा था। ऋताभरी भी सीखना चाहती थी, पर पढ़ाई समाप्त होने से पहले ही उसके पिता जी ने उसकी शादी अपने दोस्त के बेटे से जबरदस्ती तय कर दी। ऋतु बिलकुल भी शादी करने के मूड में न थी। फिर उसने अपने दूल्हे को देखा भी न था। पिताजी ने यह कहकर उसे फोटो नहीं दिखाई थी कि कहीं वह इंकारी में कोई हंगामा न कर दे । परिवार में सभी कहते हैं कि दूल्हा- दूल्हन बचपन में एकबार मिल चुके हैं। परंतु ऋतु को दूल्हे की शक्ल- सूरत कुछ भी याद नहीं है। बहरहाल, रुचि और शुभी ( दोस्तों के बीच स्नेहपूर्वक इन्हीं नामों से वे दोनों पुकारी जाती थी। ऋताभरी को उन लोगों शाॅर्ट करके ऋतु बना दिया था।) दोनों ही एक- दूसरे से इस समय भयंकर मुकाबले में जुटी हुई थी। कौन ऋतु को ज्यादा अच्छा लूक दे सकती है? उनके हुनर का मानो आज इम्तिहान था! और तो और सारी दोस्ती भूलकर दोनों इस समय मानो किसी  प्रतियोगिता में प्रतिस्पर्धी बनी हुई थीं! और एक- दूजे को मात देने पर तुली हुई थीं। ऊपर से आग में घी डालने का काम आंटी ( ऋतु की मम्मी) ने किया था। उन्होंने दोनों को आपस में लड़ते देखकर हँसते हुए कहा था कि जिसका भी काम अतिथियों, खासकर ऋतु के होने वाले ससुराल की औरतों द्वारा ज्यादा पसंद किया जाएगा। उनको वे अपनी ओर से विशेष रूप से पुरस्कृत करेंगी। फिर क्या था दोनों सहेलियाँ मैदाने- जंग में कूद पड़ी। रुचि और शुभि के बीच एक करार हुआ कि शुभि दुल्हन के चेहरे को चमकाएगी, अर्थात् उसका मेकअप करेगी और रुचि पर जिम्मेदारी होगी उसे कपड़े और गहने आदि से सजाने की। सो दोनों इस समय जी जान से दुल्हन के सोलह- श्रृंगार करने में लगी हुई थी। और इधर जिसे लेकर इतना हंगामा हो रहा था वही बुत् समान बनी इन दोनों के बीच में बैठी हुई थी! मानों वह यहाँ प्रसाधन - कक्ष में थी ही नहीं!! आकाश के साथ बीताए हुए पल, उसकी वह बातें,वह हँसता हुआ मुखड़ा, यूँ आँखों में प्यार भरकर उसे देखना सब कुछ उसे इस वक्त रह- रहकर याद आ रह था। कल रात को मैसेन्जर पर उनकी आखिरी बार बात- चित जब हुई थी तो आकाश ने उससे कहा कि अब ऋतु को उसे भूल जाना चाहिए! परंतु क्या कभी ऋताभरी अपने आकाश को भूल सकती हैं? जब तक इस देह में प्राण है तब तक तो कम से कम नहीं!! उसके पापा के प्रखर व्यक्तित्व के आगे सब बेबस रहते थे। वे दफ्तर में ऊंचे ओहदे पर थे इसलिए घर और दफ्तर दोनों ही जगह उनका काफी दबदबा था। उनकी शख्शीयत ही कुछ ऐसी थी कि लोग उनके सामने जाकर सारी बातें भूल जाते थे! उनकी आँखों में वह तेज़ था जिसमें कि किसी के अंतर्मन तक को पढ़ डालने की क्षमता निहित हो। इसके बावजूद भी ऋतु गई थी उनके पास! जब माँ से कहने पर कोई लाभ न हुआ तो एक आखिरी कोशिश उसे करनी थी किसी तरह जमीन पर से नज़र न हटाते हुए अपनी अर्जी पापा के वह पेश कर पाई थी। कुछ- कुछ उसी तरह जैसे दफ्तर के कर्मचारी उनके पास डरते- डरते छुट्टी का आवेदन लेकर आते थे! परंतु इसका परिणाम अत्यंत भयानक हुआ था। पापा ऋताभरी से बहुत नाराज़ हो गए थे। उन्होंने एक महीना तक घर में किसी से कोई बात न की थी। फिर महीने भर बाद आकर सबको अपना अंतिम निर्णय सुनाया कि अगले महीने वे ऋतु की शादी लड़के वालो के साथ तय करके आए हैं। लड़का भी उसी समय बंगलौर से छुट्टी लेकर घर आएगा और शादी के बाद अपनी दुल्हनिया को साथ लेकर अपने कर्मस्थल पर वापस चला जाएगा। दिल बैठ गया था ऋतु का । वह भयंकर निराश हो गई थी। उसने एकबार तो घर से भाग जाने की भी सोची। पर आकाश ने उसे संभाला था उस वक्त। उसने ही उसे समझाया था कि देखो जो होता है भले के लिए ही होता है। उस जैसे बेरोज़गार से शादी करके तो वह किसी तरह खुश नहीं रह पाएगी। इससे कहीं अच्छा है कि वह अपने साॅफ्टवेयर इंजीनियर पति को अपना ले। जीवन में पैसे की बहुत अहमीयत होती है। " भूखे पेट तो प्यार भी नहीं रह पाता है।" यही आकाश का अंतिम वाक्य था! शुभि और रुचि ने तो आखिर कमाल कर दिखाया !! उन्होंने ऋतु को इस तरह से तैयार किया कि देखने वाले पलक झपकना तक भूल जाते थे। यह तय करना मुश्किल हो रहा था कि किसका काम बेहतर है। कोई भी एक दूजे से जौ भर भी कम था! यह शुभि के ब्रशों का ही कमाल था कि ऋतु के कपोलों पर सूखे आँसुओं के निशान और मुरझाई एवं बुझी हुई नज़रें भी इस समय बलाॅ की खूबसूरत लग रही थी। इधर लहंगे और गहनों से रुचि ने उसे इस तरह सजा दिया था कि ऋतु को देखकर उसके ससुराल वाले बार- बार अनुष्का शर्मा और यामी गौतम से तुलना करने लग गए थे। जब दुल्हन को मंडप पर ले जाने की बारी आई तो भारी मन से ऋतु को उठना पड़ा। उसकी सहालियाँ भी साथ चल पड़ी। अगर लाॅस्ट- मिनट टच- ऑप करना पड़े इसलिए उन दोनों ने ही अपने साथ थोड़ा- थोड़ा मेक- अप का सामान भी साथ में रख लिया। मंडप की ओर धीर कदमों से अग्रसर होते ही मम्मी ने आकर ऋतु का हाथ पकड़कर उसे दूल्हे के बगल में बैठा दिया। आज मम्मी भी गज़ब की सुंदर लग रही थी। झिलमिल साड़ी और गहने में वे ऋतु की माँ कम और छोटी बहन ज्यादा लग रही थी। ऋतु की मम्मी कृष्णा जी के जल्दी हाथ - पीले करा दिए गए थे। वे उस समय महज उन्नीस वर्ष की ही थी जब ऋतु उनकी गोदी में आई थी। ऋतु का भाई मधुर उससे पाँच वर्ष छोटा है। परंतु कृष्णा जी को देखकर कोई यह नहीं कह सकता था कि उनके बच्चे इतने बड़े हो गए हैं! ऋतु चौबिस की हो चली थी और इस समय बेहद उदास थी। उसने ठीक से मम्मी की ओर देखा भी नहीं और यंत्रचालित-सी दूल्हे का पास बैठ गई। परंतु वहाँ बैठते ही उसे आकाश का चेहरा याद हो आया और आँखों से आँसुओं का सैलाव बह निकला। उसे बार- बार यह लगने लगा कि काश! आकाश इस समय यहाँ होता। उसे तो केवल उसी का दुल्हन बनने की चाह थी। और फिर वह अपने आपको रोक न सकी। मेहंदी लगे हुए सुंदर हथेलियों से अपना चेहरा छुपाकर वह ज़ोर- जोर से सिसकियाँ भरने लगी। उसका मेकअप खराब होने के डर से शुभी और रुचि भागकर अपनी सहेली के पास चली आई। वे दोनों उसे भाँति- भाँति से समझाने लगी। परंतु ऋतु पर उसका कोई असर न हुआ। अच्छा खासा सीन बन चुका था। क्या कभी किसी ने दुल्हन को इस तरह मंडप में बैठकर रोते हुए देखा था? शुभ कार्य में आँसू की बूँदें अपशकुनी से लग रहे थे। अतिथियों में भी काना- फूँसियाँ आरंभ हो गई थी। सबको अब तक पता चल चुका था कि दुल्हन शादी हेतु तैयार नहीं है। उससे जबरदस्ती शादी करवाई जा रही है। इधर दूल्हे के पक्ष वाले भी बहुत नाराज़ दिख रहे थे। ऋताभरी के इतने व्यक्तित्वशाली पिता हाथ जोड़कर, अपनी पगड़ी उताकर सबके सामने माफी माँगते हुए गिर- गिरा रहे थे। तभी सेहरा हटाकर दूल्हा अपने स्थान से उठ खड़ा हुआ। उसने एक नज़र रोते हुए ऋतु पर डाला। वह अभी तक शुभि के कंधे पर सिर रखकर रोए जा रही थी। शेर की तरह गरजकर दूल्हा सबको चौंकाते हुए अपनी होने वाली दुल्हन को संबोधित करते हुए बोल उठा-- " यह कैसा तमाशा खड़ा कर दिया तुमने, ऋतु? मैसेन्जर पर तो मुझसे कई बार कह चुकी हो कि अगर मुझसे तुम्हारी शादी नहीं हुई तो तुम अपनी जान दे दोगी? तो क्या वह सब झूठ था? " बिजली के झटके खाने के समान ऋतु शुभि के कंधे अलग हो गई। उसने पहली बार अपने दूल्हे को देखा। वह आकाश ही था!!! फिर पापा की ओर देखा तो उन्हें मंद- मंद मुस्कराते हुए पाया। वे आगे आकर रहस्य का खुलासा करते हुए से बोले, " हाँ बेटा, आकाश ही मेरे दोस्त का लड़का है। तुम दोनों की शादी तो बचपन में तय हो चुकी थी। पर आकाश की जिद्द थी कि वह तुमसे बातें किए बिना, तुमको जाने बिना यह रिश्ता फाइनल नहीं करेगा। इसलिए उसने फेसबुक के ज़रिए तुमसे पहले दोस्ती करने की कोशिश की थी।" " परंतु-- परंतु आकाश--- आकाश ने तो कहा था कि वह बेरोज़गार है!!-- नौकरी की तलाश कर रहा है---,!!!" ऋतु मानों अब भी यकीन नहीं कर पा रही थी। इस समया आकाश की माता जी ने कहा, " बेटी, पिछले महीने ही उसकी नौकरी पक्की हुई है, तभी तो हम तुम दोनों की शादी के लिए हाँ कर सकें। इसके पहले वह इंटर्नशीप और पार्ट टाइम काम कर लिया करता था।" ऋतु ने अबकी बार अपनी बड़ी- बड़ी आँखें उठाकर आकाश की और देखा। आकाश ने सबकी नज़रें बचाकर ऋतु को एक आँख मार दी। मानों उससे पूछ रहा हो-- " कहो, कैसी लगी?" प्रत्युत्तर में शरम के मारे ऋतु की आँखें ज़मीन की ओर हो गई थी! पंडित जी जो वहाँ बैठे सारा ड्रामा देख रहे थे, ज़ोर- ज़ोर से इस तरह अचानक मंत्रोच्चार करने लगे कि सबके चेहरे खिल उठे।  

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