एक सिपाही जो मरणोपरांत भी देश सेवा में रत है। भाग - 1

एक सिपाही की देश सेवा की अद्भुत कहानी

Originally published in hi
Reactions 0
845
Moumita Bagchi
Moumita Bagchi 21 Jun, 2020 | 1 min read

भारतीय सेना की बहादुरी के किस्से जितने हैरतअंगेज़ और प्रेरणादायक होते हैं उतने दिलचस्प भी! हमने आजतक कई शहीदों और सेना में सेवारत जवानों के किस्से सुने हैं, जिन्होंने जीते-जी अपनी मातृभूमि पर आँच तक नहीं आने दी। आज हम एक ऐसे जवान की कहानी बयान करने जा रहे हैं, जिसने शहादत के बाद भी अपने देश की रक्षा का ब्रीड़ा उठा रखा है। क्या आप यह सुनकर चौक गए कि मरणोपरांत कोई देश की सेवा कैसे कर सकता है? बड़ी ही आश्चर्य की बात है, है न? परंतु हमारे देश में शूरमाओं की कमी न तो कभी थी, और न ही कभी होगी! और उन शूरमाओं की वीरता की कहानियाँ भी बड़ी अनोखी है। भारतीय पुलिस हो अथवा सेना, इन जैसे सतर्क और संजीदा पदस्थापितों में अंधविश्वास या जनश्रुतियों के लिए कोई जगह नहीं होती है। ये जाबाँज लोग अपनी जिन्दगी के हर मोड़ पर मौत का आलिंगन करने के लिए तैनात रहा करते हैं। फिर भी कभी कभी कुछ कहानियाँ ऐसी भी चल पड़ती हैं जो वास्तविक होकर भी अविश्वसनीय लगती है। बाबा हरभजनसिंह की कहानी भी ऐसी हैरतअंगेज कर देनेवाली है। यह कहानी है भारतीय सेना के विश्वास की। उनकी आस्था की और एक सच्चे देशभक्त के प्रति प्रेम और श्रद्धा के भावना की। एक सैनिक है, जो मरणोपरांत भी अपना काम पूरी मुस्तैदी और निष्ठा से कर रहे हैं। मरने के बाद भी वे सेना में कार्यरत हैं और उसकी पदोन्नति भी होती है। उनका नाम है हरभजन सिंह। स्थानीय लोग उन्हें प्यार से बाबा कहते हैं। बाबा यानी कि संत, साधु या महात्मा को जिस तरह सम्मानार्थ बाबा कहा जाता है, कुछ- कुछ उस तरह ही। हरभजनसिंह का जन्म 30 अगस्त 1946 को सरदाना नामक एक गाँव में, जो अभी पाकिस्तान में है, एक सीख परिवार में हुआ था। इनकी माता का नाम अमर कौर के रूप में मशहूर है। उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा गाँव के स्कूल में पाई थी। इसके बाद मार्च 1965 में इन्होंने पट्टी, पंजाब के DAV School से Matriculation का इम्तिहान पास किया। इसके बाद इन्होंने 9 फरवरी, 1966 को अमृतसर में Punjab Regiment में एक सैनिक के रूप में योग दिया था। सन् 1968 में वे 23वें पंजाब रेजिमेंट के साथ पूर्वी सिक्किम में सेवारत थे। 4 अक्तूबर, 1968 को खच्चरों का काफिला ले जाते वक्त पूर्वी सिक्किम में "नाथूला पास" के पास उनका पाँव फिसल गया और घाटी में गिरने से उनकी मृत्यु हो गई । पानी का तेज बहाव उनके शरीर को बहाकर 2 किलोमीटर दूर ले गया। कहा जाता है कि उन्होंने अपने साथी सैनिक के सपने में आकर अपने शरीर के बारे में जानकारी दी। खोजबीन करने पर तीन दिन बाद भारतीय सेना को बाबा हरभजन सिंह का पार्थिव शरीर उसी जगह पर मिल गया था, जहाँ कि उन्होंने सपने में आकर बताया था। 

क्रमशः



0 likes

Published By

Moumita Bagchi

moumitabagchi

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.