क्वेरेन्टाइन का छठा दिन

एक घरेलू सहायक की सोच, डायरी के माध्यम से

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Moumita Bagchi
Moumita Bagchi 05 Apr, 2020 | 1 min read

क्वेरेन्टाइन का छठा दिन

05/04/20

डियर डायरी,

मैं मालती , उम्र 29 वर्ष। टिया दीदी के घर में काम करती हूँ। इतनी पढ़ी-लिखी तो नहीं हूँ कि डायरी में लिख सकूँ। सरकारी पाठशाला में चौथी जमात तक पढ़ी थी। पढ़ने में ज्यादा मन नहीं लगता था, इसलिए माई अपने साथ काम पर ले जाने लगी।

फिर, टिया दीदी ने जबरदस्ती थोड़ा बहुत लिखना सीखा दिया। वह खुद भी पढ़ती है और मुझे भी पढ़ाती है। हीही।

टिया दीदी के घर में पिछले नौ वरस से काम कर रही हूँ। जब टिया दीदी पैदा भी नहीं हुई थी, तभी से मैडम की देखभाल करती थी। अब इस घर में इतना अपनापन मिला कि कभी कभी लगता है कि मैं भी इस परिवार की ही हूँ।

पिछले कुछ दिन से न जाने क्या हुआ कि मैडम काम पर नहीं आने दे रही है। कहती हैं कि लाॅकडौन है। घर पर बैठो। मैंने कितना समझाया कि मैडम जी घर पर बैठूं तो मेरे बच्चे भूखे से मर जाएंगे!

मैडम कहती हैं कि चिंता मत करो, पगार पूरा मिल जाएगा। ये क्या बात हुई, भला? काम मत करो और पूरे पैसे ले लो?

टिया दीदी कहती है ," साबुन से हाथों को मल-मलकर धोओ। अब मेरे पाँच बच्चे हैं। फिर सोचो, हम सात जनों के लिए महीने में कितना साबुन खरीदना पड़ेगा? ही ही ही।

खाने को तो पैसे पूरे नहीं होते ऊपर से झुग्गी का मालिक इतना किराया माँगता है कि मैरी तीन-चौथाई पगार तो उसी में चले जाते हैं। मझली और सबसे छोटे के जूते फट गए हैं। बड़की को सकूल के लिए किताब लेनी है। तीसरी और चौथी के फ्राॅक फट गए हैं।

सोचा था, इस महीने की पगार मिलेगी तो ले लूंगी। ऊपर से ये लाॅकडौन। पता नहीं, नौकरी बचेगी कि नहीं?

राकेश को तो बहुत अच्छी पगार मिलती थी जब वह सेठजी के घर ड्राइवरी करता था। परंतु मर्दों के हाथ में पैसा आते ही उनके कदम सीधे नहीं पड़ते।  यार दो चार और जुट जाए तो क्या बात है! ऊपर से जुए की लत और पड़ गई। फिर वह कोठेवाली के पास भी जाने लगा। घर में एक पैसा नहीं लाता था।

सेठ जी ने बहुत समझाया, पर वह कहाँ सुधरा? अब सेठजी भी अपना कितना नुकसान कराते? पिछले महीने काम से भी निकाल दिया।

वह तो भला हो, तरुण साहब का कि कुछ गाड़ियों को धोने के काम पर लगा दिया।

आजकल वह भी घर पर ही बैठा हुआ है। उसके घर में रहते किसी और की क्या मज़ाल, कि थोड़ी शांति से रहे? हर वक्त लड़ाई झगड़ा, गाली-गलौच उसका चलता ही रहता है।

अगर दिमाग थोड़ा ठंडा हुआ तो कुछ न कुछ खाने की फरमाइश! मानो घर न हुआ, कोई होटल है। अब हम क्या मैडम लोगोन के जैसै कुछ भी खा सकते हैं?

फिर जितना कुछ बनता है, राकेश अकेले सब खा जाता है। बच्चे मेरे ,भूख से तरसते रहते हैं।

दारू की सारी दुकानें बंद है न? इसलिए भी उसका गुस्सा आजकल सातवे आसमान पर रहता है।

वह, जब घर पर नहीं होता है, तो हम सब थोड़ा शांति से रहते हैं।


मुझे टिया दीदी के घर पर ही अच्छा लगता है। कितनी शांति है, वहाँ!! कोई आवाज ऊँची करके बात नहीं करता! अंकल और अंटी जी आए हैं, आजकल। वे भी कितने अच्छे हैं। मेरे बच्चों को कुछ न कुछ देते रहते हैं।

पता नहीं, कितने दिनों तक यूँ घर में बैठे रहने पड़ेगा?

तुम ही बताओ, मेरी प्यारी डायरी।


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