जुगनी

एक औरत के मन की व्यथा

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Mona kapoor
Mona kapoor 06 Jun, 2019 | 1 min read

"राम - राम अम्मा ! कैसी हो ?"पचास साल की जुगनी कपड़े का झोला अपने कंधे से उतारकर, चारपाई पर बैठी अम्मा के पास रखकर बैठते हुए बोली।"मैं तो ठीक हूँ, लेकिन जुगनी तू बड़े दिनों बाद दिखाई पड़ी सब ठीक तो है ना ?""बस अम्मा, कुछ दिनों से तबीयत खराब - सी लग रही थी, अब शरीर भी तो ढलने लगा है तो रोज़ कोई ना कोई नही बीमारी हो जावे...अब कर भी क्या सकती हूँ।""ये तो सही कह रही तू जुगनी, एक तो अकेली ऊपर से औरत जात कैसे करती होगी सब कुछ समझ सकूँ मैं, घर - परिवार होता तो बुढ़ापा संवर जाता तेरा, खैर अब जो है यही है।"मुस्कान का मुखौटा ओढ़े जुगनी झट से बोल पड़ी,“अम्मा चाय ना पिलाओगी, इतने दिनों बाद आई हूँ तुमसे मिलने।"“अरी ! कैसे ना पिलाऊंगी ? रुक तो ज़रा।“ अम्मा बोली,

“गुंजा .. अरी ओ गुंजा..कहाँ है तू ? ज़रा चाय नाश्ता तो लेकर आ।"“गुंजा...ये कौन है अम्मा, कोई रिश्तेदार आया है क्या ?”जुगनी आगे कुछ पूछती इससे पहले ही उसने सफ़ेद रंग की साड़ी में लिपटी एक ऐसी मासूम सी लड़की को अपने सामने खड़ा पाया, जो एक हाथ में चाय का बड़ा सा गिलास संभालने के साथ साथ दूसरे हाथ से अपने सिर के पल्लू को बार बार उतरने से बचाने की पूरी कोशिश में लगी हुई थी।"जी चाय !" कहते हुए गुंजा चाय का गिलास चारपाई के पास पड़े लकड़ी के छोटे से तख्त पर रख तुरंत जुगनी के पैर छू कर प्रणाम करने लगी। जुगनी के कंपकपाते हाथ मन में अजीब सी घबराहट के चलते आशीर्वाद देने को उठे भी लेकिन गुंजा के सिर तक पुहंच ना सके।"अम्मा, ये कौन है ?” तुरंत जुगनी ने पूछा।"अरे ये ! ये तो मेरे जगन की ब्याहता है।""क्या बात कर दी तुमने अम्मा...जगन तो दो साल पहले ही हमे छोड़ चल बसा था फिर ये गुंजा ?"जुगनी कुछ आगे बोलती, इससे पहले ही अम्मा तपाक से बोली,"अरी जुगनी ! जगन और गुंजा का ब्याह बचपन में ही हो गया था। अब जगन तो रहा नहीं, लेकिन गुंजा ब्याहता तो थी ना उसकी ..अब हमारी बहू व ज़िम्मेदारी है इसीलिए पिछले हफ्ते गौना कर लाये उसका। अगर जगन होता तो वो अपने अकेले बूढ़े अम्मा, बाऊजी को संभालता ना, अब वो तो रहा नहीं तो उसकी ज़िम्मेदारी उसकी ब्याहता ही तो उठाएगी ना ..चल तू ही बता कुछ गलत किया क्या ? अब उसकी किस्मत में यही लिखा था, तो यही सही। खैर, छोड़ इन सब बातों को। तू चाय पी चाय।”- सुन्न सी पड़ी जुगनी को हाथ से हिलाते हुए अम्मा बोली।"ना अम्मा, अब मन ना कर रहा चाय पीने का, दिल कच्चा सा लागे। फिर कभी पी लूंगी, अब चलती हूँ।" कहते हुए जुगनी अपना झोला लेकर निकल पड़ी अपने घर की ओर।निःशब्द सी जुगनी को आज गुंजा में अपना अतीत दिखाई दे गया था कि कैसे चालीस साल पहले जुगनी बाल विवाह के जाल में फंसकर अपने ब्याहता के आकस्मिक निधन के बाद, उसकी विधवा बन कर ससुराल आई और ज़िम्मेदारियों के बोझ तले ऐसी दबी कि बचपन से ही जीवन का हर रंग सफेद रंग में बदल गया। नफरत हो गयी थी उसे समाज की उन कुरीतियों से जो आज गुंजा को एक नई जुगनी बना रही थी।

धन्यवादस्वरचित रचनामोना कपूर

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