कटी पतंग

यह कविता हर मानव जीवन पर आधारित है

Originally published in hi
Reactions 1
678
Mithlesh Singh
Mithlesh Singh 04 Mar, 2021 | 1 min read

विधा - लावणी छंद (गीतिका १६/१४ पर यति)

टूट रहा नित खंड-खंड सा, सबका दृढ़ आधार यहाँ।

परछाई जब साथ छोड़ दे , हर वैभव बेकार यहाँ।।

छोड़ अकेला जीवन पथ पर, चोरी-चुपके भाग गया,

खेल गया वह खेल अनोखा , मैं पछताऊँ हार यहाँ।

अंधकार अब अधम सामने, अंश देखता हंस फँसा,

हिय प्रकाश बन बसा बटोही, प्रिय बिन क्या संसार यहाँ?

अश्रुधार बन हार गले का, कहता सबकुछ मौन खड़ा,

उलझ गई हैं राहें सारी, उलझा मन बीमार यहाँ।

चारों ओर बिछाया चौरस, चाल नियति ने बाँध दिया,

बिन प्यादे क्या राजा-रानी, कैसे हो प्रतिकार यहाँ? 

1 likes

Published By

Mithlesh Singh

mithleshsingh

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.