और बढ़ती है #एक ग़ज़ल

एक ग़ज़ल, रदीफ़ - और बढ़ती है

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Sunita Pawar
Sunita Pawar 30 Jun, 2020 | 1 min read

हो ईमान से जीत हासिल तो इज़्ज़त और बढ़ती है

जो आदत होगी सीखने की तो लियाकत और बढ़ती है



चुप्पी ठीक होती है पर जब वार हो अपने ही वजूद पर

बोलना होगा वरना दुश्मन की हिमाकत और बढ़ती है



गिरने से जो छिले हैं पाँव और टूटी हैं हड्डियां तो क्या

घाव को देखोगे तो जिंदगी से शिकायत और बढ़ती है



उम्र की गिनती न गिनाया करो तुम यूँ नासमझ बनकर

जानते नहीं क्या वक़्त के साथ ज़हानत और बढ़ती है



मेरे अपने हैं रास्ते, अपनी चाल और उसूल भी अपने है

बात ये है कि जब रोके मुझे कोई तो हिम्मत और बढ़ती है

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Sunita Pawar

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