दहेज प्रथा

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Manu jain
Manu jain 11 Aug, 2019 | 1 min read


एक लौती बेटी बाबा की 

पलकों पे सजती है जो


प्यार दुलार लुटाती है

सबको खूब हंसाती है


बाबा की नटखट गुड़िया है

अम्मा की सहेली है


दिन भर चहल-पहल रखती हैं

रात में लोरी सुनती है


जब लाडो बड़ी हो जाती 

तब पराई हो जाती है


उसका ब्याह रचाने में

पाई-पाई खर्च हो जाती है


तब कुछ सामाजिक तरीकों से 

 उनसे दौलत मांगी जाती है


गर वो न हो सक्षम देने में 

तो बेटी ठुकराई जाती है


फिर भी अपनी ख्वाहिश बेचकर 

उनकी मांगे पूरी करते हैं


देने में गर्दन झुक जाती

पर उनकी अकड़ न जाती हैं


ये कह कर वो लोग दहेज मांगा करते हैं

कि दान बिन पाप के भागी बन जाओगे

जाकर नरक में इस गलती की सजा बड़ी तुम पाओगे


सब कुछ सह लेते हैं मां बाप

बिटिया के खातिर

सारी ज़िन्दगी दे दी उन्होंने

फिर भी हर रोज़ पूछा जाता है

" तेरे बाप ने दिया ही क्या है आखिर "


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