लाश की गवाही - भाग 2

कभी कभी सच एक धमाके के साथ आपके सामने फट पड़ता है I आप हतप्रभ रह जाते हैंI अविश्वश्नीय, कल्पना से परेI ये एक ऐसी ही कहानी हैI अब दुर्भाग्यवश या सौभाग्यवश कहूँ, ये एक सत्य घटना पर आधारित हैI

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Manoj Kumar Srivastava
Manoj Kumar Srivastava 28 Aug, 2022 | 1 min read

रीता ने चारों तरफ नज़र घुमाई। प्रेस रूम खचाखच भरा हुआ था। उसका परिवार भी वहीँ बैठा था। उसकी नज़रें उस तरफ जा ही नहीं पा रही थी। हर नज़र घृणा से भरी हुई उसे घूर रही थी। अचानक वो फूट पड़ी।

"नहीं सर नहीं, मैं नहीं बोल पाऊँगी।"

"ठीक है। देवियों सज्जनों, रीता इस समय कुछ भी बोल पाने की अवस्था में नहीं है। इंस्पेक्टर लाल चंद जी इस केस के विवेचना अधिकारी हैं, वे आप सबके सामने पुलिस की विवेचना की विस्तृत रिपोर्ट पेश करेंगे।" पुलिस कप्तान श्री राघवन पत्रकारों से मुखातिब हुए।

"सर", लाल चंद ने शुरू किया।

"पत्रकार बंधुओं, मैं इंस्पेक्टर लाल चंद हूँ। मैं इस केस का विवेचना अधिकारी हूँ। शुरुआत से ही राकेश हमारे रडार पर था। औरों की तरह हम लोग भी इसी थ्योरी पर चल रहे थे की राकेश ही अपराधी है। हमने उसका मोबाइल सर्विलांस पर डाल दिया था।" लाल चंद ने कुछ रुक कर एक घूँट पानी पिया।

"क्या उसके मोबाइल से कोई कॉल हुई थी? इंडियन टाइम्स के रिपोर्टर बोस ने पूछा।

"नहीं सर, एक भी कॉल नहीं। पूरे समय उसका मोबाइल बंद रहा।"

"फिर?"

"ये एक दूसरी कॉल थी जिसने केस को हल करने में मदद की। बड़ी अजीब बात है, पर हमेशा ये देखने में आता है की अपराध, अपराधी और अपराध करने की जगह में एक अजीब सा सम्बन्ध होता है। अपराधी हमेशा अपराध से सम्बंधित लोगों और जगहों से हमेशा आकर्षित होता है। कितना भी शातिर अपराधी हो कोई न कोई गलती जरूर कर बैठता है। और यही गलती उनको पुलिस तक ले आती है। यही कॉल जिसके बारे में मैं कह रहा हूँ, उनकी गलती थी। इसी गलती ने उन्हें बेनकाब किया।"

"किसकी कॉल थी इंस्पेक्टर साहब?" सौरभ यादव, चैनल वन के रिपोर्टर ने बात को बीच में काटते हुए पूछा, "कहाँ से हुई थी कॉल?"

लाल चंद को बीच में टोकना अच्छा नहीं लगा। खैर वो आगे बोले,

" हम लोग पोस्ट मोर्टेम वाले दिन, वहीँ अस्पताल में थे। जब रीता की बॉडी वर्मा परिवार को सौंपी जा रही थी कि अचानक वर्मा जी के मोबाइल पर एक कॉल आयी।"

"याद आ गया। लेकिन अपने तो मुझसे फ़ोन ले लिया था।" वर्मा जी अचानक बोले।

"ये जानने के लिए की किस नंबर से कॉल आयी थी।"

"ओह!" वर्मा जी अपनी कुसी पर जैसे लुढ़क गए।

"मैंने तुरंत इस नंबर को सर्विलांस पर डाल दिया। ये नंबर बाराबंकी के एक मोहल्ले में ट्रेस हुआ। हम लोग तुरंत इस लीड पर जुट गए। पता है ये कॉल किसने की थी? रीता ने!" लाल चंद कुछ क्षण के लिए रुके।

"ओह! लेकिन मैं क्यों नहीं इसकी आवाज़ पहचान पाया? इतना टेंशन, इतनी अफरा तफरी और मैं ये जान भी कैसे सकता था की ये, ये रीता कॉल कर रही थी।" वर्मा जी का चेहरा गुस्से और दुःख से भरा हुआ था।

"वर्मा जी, शांत रहिये, हिम्मत रखिए।" राघवन साहब ने उनके कंधे पर हाथ रख कर ढांढस बढ़ाया।

"फिर?" बोस से रहा नहीं जा रहा था।

"हमने राकेश के बारे में पूरी जानकारी जुटाई। वो एक ठेकेदार है। बिल्डिंग वगैरह के सामानों की सप्लाई करता है । मोरंग, कंक्रीट वगैरह। वो लखनऊ से यहाँ आता जाता रहता है। दीनू नाम का लड़का राकेश का पडोसी है। वो राकेश के ट्रक में खलासी का काम करता है। हमने सबसे पहले उसे हिरासत में लिया। जल्दी ही उसने सब कुछ उगल दिया। उसी ने हमें सब कुछ बताया। हम तो दंग रह गए।"

"अपराध के बारे में?" सौरभ ने उत्सुकता से पुछा।

"नहीं, अपराधी के बारे में। उसकी गवाही ने पूरा केस ही पलट दिया। यहाँ हम रीता के हत्यारे को ढूँह रहे थे और यहाँ रीता ही हत्यारिन थी, अविश्वश्नीय।"

अचानक प्रेस रूम में जैंसे हलचल मच गयी। दूर उधर जिधर रीता की माँ बैठी थी लोग इकठ्ठा हो गए। वो अपनी कुर्सी पर ही बेहोश हो गयी थी। शर्म, गुस्सा, दुःख, पछतावा सभी ने मिलकर अपना असर दिखाया था। सभी उस तरफ लपके। रीता ने भी आने की कोशिश की।

"दूर रहो हमसे। हमारे लिए तुम मर चुकी हो। हमने तुम्हारा दाह संस्कार कर दिया है। हमसे दूर रहो।" वर्मा जी के गुस्से का पारावार न था।

उन्होने सूरज को पुकारा और पुलिस की मदद से उन्हें बाहर ले गए। कुछ ही क्षणों में उनको होश आ गया और वो जार जार होकर रोने लगीं। अंदर प्रेस वार्ता चल रही थी।

"वो नंबर। वो नंबर, हमारे सर्विलांस पर था। उस नंबर को हमने बाराबंकी की नई मंडी मोहल्ले में ट्रेस कर लिया। दीनू हमारे साथ था। हम लोग लगभग ग्यारह बजे रात तक इंतज़ार करते रहे। मैं, हमराही जीवन और शिव राम के साथ दरवाज़े पर गया। घंटी बजायी। आपको यकीन नहीं होगा। हम भी सकते में आ गए थे। दरवाज़ा खुद रीता ने खोला। राकेश भी अंदर था। हमने तुरंत उन्हें हिरासत में ले लिया। शुरुआत में दोनों बात करने में आनाकानी कर रहे थे। हमने उनका दीनू से आमना सामना कराया। वो टूट गए। दोनों ने दीनू की कहानी को पूरी तरह से अपने मुँह से उगल दिया।

"पर वो लड़की जिसकी लॉश मिली थी, जिसका दाह संस्कार हुआ था, वो कौन थी?" क्राइम टुडे पत्रिका के श्रीवास्तव ने पूछा।

उसी समय राकेश को लेकर शिव राम अंदर आ गए।

"रीता क्या तुम आगे की कहानी बताओगी?" राघवन साहब ने पूछा।

रीता हथेली में मुँह को छिपाये सर झुकाकर चुपचाप बैठी थी।

"कोई बात नहीं। आगे की कहानी राकेश बताएगा।" कप्तान साहब ने आदेश दिया

"सर मैं रीता का पडोसी हूँ।", लड़खड़ाती हुई आवाज़ में राकेश ने अपनी कहानी शुरू करी, "हम दोनों एक दूसरे को बहुत ज़्यादा पसंद करते थे। ये पसंद आगे चलकर प्रेम में बदल गयी। रीता अपने माता पिता, खासकर पिता से बहुत डरती थी। कई बार हमारे बीच ये बात हुई की चल कर सब कुछ रीता के पिता को बता दिया जाये। लेकिन, रीता हर बार हिचकिचा जाती थी। वो नहीं चाहती थी की किसी को भी हमारे बारे में पता चले।

"फिर।"

हम दोनों ने सोचा की अगर मैं धमकी भरे उलटे सीधे कॉल उसके मोबाइल पर करूँ तो किसी को भी हमारे बारे में पता नहीं चल पायेगा। तो मैंने शुरू कर दिया। तीर निशाने पर लगा। कोई सोच भी नहीं सकता था की हमारे बीच कुछ चल रहा है।" राकेश ने कनखियों से रीता की ओर देखा। वो अभी भी हथेली से मुँह छिपा कर बैठी थी।

"और अपराध? उसकी क्या जरूरत थी?" श्रीवास्तव ने पूछा।

"सर पता नहीं हम दोनों को क्या हो गया था। हम लोग अब एक दूसरे के बगैर रह नहीं पा रहे थे। ये हमारे बर्दाश्त के बाहर हो रहा था। इस छटपटाहट में हमने इस प्लान को बना लिया। एक लड़की की तलाश शुरू हो गयी जो कद काठी और रंग में रीता जैसी हो। भोला, जो मेरा ड्राइवर था, उसने मुझे बताया की उसे ऐसी लड़की मिल गयी है।उसने उस लड़की को मुझे दिखाया। मैं तो दंग रह गया। अगर उसके शरीर पर रीता का चेहरा लगा दिया जाये तो समझ लीजिये कोई फ़र्क़ नहीं बता सकता था। ऐसा लगता था जैसे रीता आपके सामने खड़ी है। इसके बाद हमने अपने प्लान को आगे बढ़ाया।" तभी वर्मा परिवार अंदर आ आ गया।

"वो लड़की सोना थी। धंधा करती थी। भोला ने उसे लालच देकर अपने साथ चलने के लिए मना लिया। 3000 हज़ार रूपया एडवांस दे दिया। सोना भी अपने ग्राहकों के साथ बाहर जाती थी। उसके लिए कोई नयी बात नहीं थी। वो भोला के साथ ट्रक में उसके घर चलने के लिए तैयार हो गयी। दीनू भी उनके साथ था। रात का कोई दस बज रहा होगा। तीनों यहाँ पहुँच गए। उसने सड़क के किनारे, पुलिया के पास ट्रक खड़ा किया। इस जगह दिन में भी इक्का दुक्का लोग आते हैं, रात में तो एकदम सूनसान थी। एकदम सन्नाटा था।

"फिर?" यादव ने पूछा।

"भोला ने सोना से कहा की वो अपने कपडे लेने जा रहा है। लगभग 15 मिनट में लौटेगा। फिर वो लोग रात बिताने के लिए भोला के एक दोस्त के यहाँ जायेंगे। 3000 हज़ार रुपये अपना कमाल दिखा रहे थे। सोना को कुछ भी गड़बड़ नहीं लगा। वो इतने पैसे पाकर खुश थी। वो ट्रक में उसका इंतज़ार करने लगी। दीनू उसके साथ वहीँ रुक गया। रीता और मैं पहले से ही पुलिया के पास छिपे बैठे थे। अचानक हम चारों उस पर टूट पड़े। इसके पहले की वो कुछ समझ पाती मैंने उसका मुँह अपने हथेली से दबा दिया। रीता और दीनू ने उसके पैर जकड लिए। भोला ने रीता के दुपट्टे से उसका गला घोंट दिया। कुछ ही मिनटों में उसके प्राण पखेरू उड़ गए। भोला, दीनू और मैं ट्रक से उतर गए। रीता वही रुक गयी। रीता ने अपने कपडे सोना को पहनाये और उसके कपडे खुद पहन लिए। अपना हार और कान की बाली उसे पहनाई अपने काले जूते उसके पैरों के पास छोड़ दिए। बहुत सावधानी से उसने काम किया था। कोई भी सबूत वहां नहीं छोड़ा था। काम ख़तम होने पर उसने हमें बुलाया। ऐसा लगता था की रीता हमारे सामने पड़ी थी बस चेहरे की दिक्कत थी। मैंने और भोला ने ट्रक से लोहे की दो रॉड निकाली। मरी हुई सोना के चेहरे पर लगातार वार कर कर के हमने उसका चेहरा बुरी तरह बिगड़ दिया। अब उसको पहचानना नामुमकिन था। उसको उठा कर हम लोगों ने पुलिया के पास लिटा दिया। काले जूते उसके पैरों के पास रख दिए।" बोलते बोलते राकेश हाँफने लगा।

"उफ़! कितने निर्दयी हो तुम लोग!", इंडियन पोस्ट की विशेष संवाददाता राखी घृणा से लगभग चिल्ला पड़ी।

"हमने सोचा की रीता के माता पिता को जब उसकी लाश मिलेगी तो वो कुछ दिनों तक उसका शोक मनाएंगे। फिर सब कुछ सामान्य हो जायेगा। फिर रीता और मैं उनकी आँखों से दूर आराम से रह सकेंगे। हमें नहीं पता था की केस इतना ज्यादा सबकी नज़रों में आ जायेगा और इतना गंभीर मोड़ ले लेगा।"

"दीनू और भोला, उनका क्या हुआ?" बोस ने पूछा।

"हमने दीनू को डरा धमका कर उसका मुँह बंद करा दिया। 1000 रूपया देकर उसको उसके घर भेज दिया। इसके बाद भोला, रीता और मैं ट्रक को, पास ही एक तालाब है, वहां लेकर पहुँच गए। ट्रक के अंदरूनी हिस्से को अच्छे से धोया साफ़ किया। मेरे और भोला के कपड़ों पर खून लग गया था। हमने अपने कपडे बदले। खून से सने कपड़ों को एक पथ्थर में लपेट कर उसी तालाब में फ़ेंक दिया। इसके बाद हम लोग ट्रक से लखनऊ आ गए। और, उसे मैंने अपने घर में खड़ा करा दिया। भोला को साथ देने के लिए मैंने 10000 रुपये दिए। वो अपने घर चला गया। लखनऊ से कोई 100 कि मी दूर फैज़ाबाद की तरफ उसका घर है। रीता और मैं बाराबंकी आ गए।"

"लाल चंद, क्या तुमने भोला को अरेस्ट करने के लिए टीम भेज दी है?" राघवन साहब ने पूछा।

"सर, टीम भोला को हिरासत में लेकर वापस लौट रही है। किसी भी समय वो लोग यहाँ पहुँच सकते हैं।" लाल चंद ने बताया।

"तो ये है इस केस कि कहानी। प्रेस वार्ता अब समाप्त हो चुकी है। आपके सामने पूरी कहानी आ चुकी है। अपराधी आपके सामने है। प्रेस रिलीज़ आपको मेरे ऑफिस से सवेरे मिल जाएगी। गुड नाईट।" कप्तान साहब ने प्रेस वार्ता ख़तम की।

पत्रकारों कि भीड़ धीरे धीरे छंटने लगी। सभी दंग थे और अविश्वाश से भरे थे। अजीब केस था। इंसानी दिमाग क्या क्या नृशंश कार्य कर सकता है! अब सिर्फ वर्मा परिवार ही बचा था।

"क्या आप लोग रीता से मिलना चाहेंगे? कोई नहीं है यहाँ, इस वक़्त?" राघवन साहब ने वर्मा जी से पूछा।

"नहीं सर। हमारे लिए रीता मर चुकी है। मैंने अपने हाथों से सोना का अंतिम संस्कार किया है। हमारे लिए वही हमारी बेटी थी। अब हमारी कोई बेटी नहीं है।" वर्मा जी पूरी तरह से टूट चुके थे।

"लाल चंद आपको घर छोड़ देंगे।"

"नहीं सर। हम लोग अपनी गाड़ी से घर चले जायेंगे।”

राघवन साहब अपनी गाड़ी से चले गए। वर्मा परिवार भी वहां से निकल चुका था। इंस्पेक्टर लाल चंद भी अपना काम निपटा कर वहां से जा चुके थे। राकेश और रीता पुलिस की गाड़ी से लॉक अप भेजे जा चुके थे। सवेरे उन्हें मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना था। पुलिस जीप में बैठे हुए लाल चंद सोच रहे थे कि, एक लड़की जिसमे अपने पिता का सामना करने कि हिम्मत नहीं थी। वो इतना आगे बढ़ गयी कि कानून ही तोड़ डाला। हत्या जैसा जघन्य अपराध कर बैठी।

हलकी हलकी बारिश शुरू हो चुकी थी। 

 

 

 

 

 

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Manoj Kumar Srivastava

manojkumarsrivastava

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • CHARU RISHI MEHRA · 1 year ago last edited 1 year ago

    बाँधे रखा आपके लेख ने 👏👏👏👏👏 अभी भी दिमाग में है 🤔

  • Manoj Kumar Srivastava · 1 year ago last edited 1 year ago

    धन्यवाद।

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