बाबूजी की बापसी

#Returning to work,#Retirement

Originally published in hi
Reactions 1
687
Manisha Bhartia
Manisha Bhartia 21 Jun, 2020 | 1 min read
Kumar sandeep Radha patwari vrindawani

रामलाल जी अपनी धर्म पत्नी के साथ नैनीताल के एक छोटे से कस्बे में रहते थे। शादी को 5 साल होने को आए, लेकिन उन्हें कोई औलाद नहीं हुई। इस वजह से वह और उनकी धर्मपत्नी सविता बहुत चिंतित और परेशान रहते थे।घर में धन-संपत्ति की कोई कमी नहीं थी। क्योंकि रामलारामलालल जी की सरकारी जॉब थी।वो रेलवे में स्टेशन मास्टर की नौकरी करते थे। बस कमी थी तो एक औलाद की, कहां कहां नहीं गए दोनों पति-पत्नी हर मंदिर हर दरगाह, हर चौखट पर जाकर माथा टेका, लेकिन भगवान ने उनकी एक न सुनी। इसी तरह से 2 साल और गुजर गए, दोनों पति-पत्नी तो जैसे हार मान चुके थे। शायद औलाद का सुख हमारे भाग्य में है ही नहीं, लेकिन तभी कुछ वक्त बाद, देर से ही सही भगवान ने उनकी सुनी और सविता की गोद भर गई। उसने प्यारे से बेटे को जन्म दिया। बहुत धूमधाम से उसका जन्म उत्सव मनाया गया, गरीबों फकीरों सब को भोजन खिलाया गया। वैसे तो कहने को, रामलाल जी के पास सब कुछ था, लेकिन औलाद के बिना सब कुछ अधूरा सा था। लेकिन भगवान ने अब उनकी यह ख्वाहिश भी पूरी कर दी थी।वो बच्चे को बहुत प्यार से पाल पोस कर बडा कर रहे थे। वैसे तो हर मां बाप अपने बच्चे को प्यार से ही पालते हैं। लेकिन क्योंकि नंदू तो अपने मां-बाप की इकलौती औलाद थी, और धन-धान्य से संपन्न होने के कारण उसकी परवरिश और भी अच्छी तरीके से हो रही थी। वक्त वितते देर नहीं लगता देखते ही देखते नंदू 3 साल का हो गया, अब उसका स्कूल में दाखिला कराया गया, बह स्कूल जाने लगा, शुरू शुरू में तो नंदू सविता जी को , स्कूल जाने में बहुत परेशान करता था।, जैसे कि हर बच्चे करते हैं, लेकिन धीरे-धीरे वह समझदार हो गया, और खुद से तैयार होकर स्कूल जाने लगा, इतना ही नहीं अब तो वह अपनी मां के काम में भी हाथ बटा ने लगा ।सब कुछ अच्छा चल रहा था, नंदू भी 16 साल का हो चुका उसने अपने माध्यमिक की परीक्षा भी पास कर ली थी। पर अचानक वक्त ने करवट बदली, रामलाल जी की पोस्टिंग कोलकाता में हो गई, ना चाहते हुए भी उन्हें अपने बीवी बच्चों को छोड़कर कोलकाता आना पड़ा। वह साल में एक या दो बार ही अपने बीवी बच्चों से मिलने नैनीताल जा पाते, वैसे तो रामलाल जी के पास पैसों की कोई कमी नहीं थी, लेकिन फिर भी बैठकर खाने से तो कुबेर का धन भी खाली हो जाता है, इसलिए वक्त की नजाकत को देखते हुए उन्होंने अपने मन को मार लिया ठीक है कुछ साल बाद जब बेटा कमाने लगेगा , तो हमारे बुढ़ापे की लकड़ी बनेगा, और मैं ऐश की जिंदगी जी लूंगा।यही सब सोचते सोचते वक्त बीतते गया, 10 साल गुजर गए। नंदू आज पूरे 26 साल का हो चुका था। इन्हीं 10 सालों के अंतराल में नंदू अपनी पढ़ाई के सिलसिले में एक दो बार मुंबई भी गया था। वही उसे कोई लड़की पसंद आ गई, और उसने अपने मां-बाप को बिना बताए उससे शादी कर ली थी।नंदू के बाबूजी लगभग 60 बरस के हो चुके थे। वैसे तो उनके रिटायरमेंट में अभी 5 साल बाकी थे, लेकिन अब उनसे परिवार की जुदाई बर्दाश्त नहीं हो रही थी, इसलिए उन्होंने सोचा कि अब वहअपना बुढ़ापा अपने परिवार के साथ आनंद से गुजारेंगे। इसी ख्याल से उन्होंने अपने घर पर फोन किया , और अपनी पत्नी से कहा कि बेटा अब शादी के लायक हो गया है, उसकी शादी वादी नहीं करनी क्या, पत्नी ने कहा, आप ठीक ही कह रहे हो जी। ठीक है आने दो उसको काम से, मैं आज ही उससे बात करती हूं। यह कहकर सविता जी अपने काम में लग गई। रात को जब बेटा घर आया तो मां ने उससे पूछा बेटा शादी वादी नहीं करनी क्या, आज तेरे बाबूजी का फोन आया था, तो कह रहे थे। अब बेटे की शादी करनी चाहिए, तेरा क्या विचार है बेटा, अरे मां इतनी जल्दी भी क्या है शादी ही करनी है कर लूंगा, कहकर टाल गया। आज भी उसने अपनी मां को यह बात नहीं बताई की उसने शादी कर ली है, उसे मन में इस बात का डर था, की मां बाबूजी पता नहीं क्या सोचेंगे यह बात सुनकर कि मैंने शादी कर ली है उन्हें बिना बताए, और ऊपर से लड़की बंगाली है। क्या वह उसे अपनी बहू के रूप में स्वीकार करेंगे? इन्हीं सब कशमकश में वह अब भी चुप था। नंदू की मां ने उसके बाबूजी को फोन करके बताया कि आपका नंदू अभी शादी के लिए मना कर रहा है, उसके बाबूजी ने पूछा क्यों आखिर वजह क्या है? कुछ बताया उसने, किसी से प्यार करता है क्या, अगर हां तो हम उसकी शादी उसी से करवा देंगे, तब सविता जी बोली ऐसा तो कुछ नहीं कहा। एक काम करो आप खुद ही पूछ लो, शायद आपको बता दें। ठीक है उसे फोन दो। हां बाबू जी प्रणाम, खुश रहो बेटा, तुम्हारी मां कह रही है कि तुम शादी नहीं करना चाहते वजह क्या है?,अगर किसी से प्यार करते हो तो बताओ बेटा, हम उससे तुम्हारी शादी करवा देंगे। अब नंदू और झूठ नहीं बोल पाया, और उसने असलियत बता दी, बाबूजी मैंने मुंबई में शादी कर ली है, लड़की हमारी जाति की नहीं है, बंगाली है। यही सोचकर बताने में मैं डर रहा था, कि आप लोग पता नहीं स्वीकार करोगे या नहीं। यह सुनकर बाबूजी को धक्का तो लगा, लेकिन यह सोचकर कि बच्चा है, माफ कर देना चाहिए। कोई बात नहीं है बेटा, तुम बहू को घर ले आओ, हम धूमधाम से सभी रिश्तेदारों के सामने तुम्हारा पुनर्विवाह कर देंगे, नंदू ने कहा ठीक है बाबूजी, अब फोन रखता हूं। नंदू के बाबूजी ने सोचा अब तो बहू भी आ जाएगी, बिना सूचना के ही घर जाकर सबको सरप्राइस कर देता हूं। सब बहुत खुश हो जाएंगे। यही सोचकर उन्होंने अपना इस्तीफा दे दिया। मन में कई उमंगे लिए रामलालजी ट्रेन में चढ गएट्रेन में चढ़ने से पहले ही रामलाल जी ने बहू के मायके वालों से शादी की बात भी कर ली थी। पंडित से कहकर शादी का मुहूर्त भी निकलवा दिया था। शादी अगले 7 दिनों के बाद होने वाली थी। नंदू से भी कह दिया था, हम बारात लेकर मुंबई जाएंगे, और बहू को विदा कराकर अपने घर ले आएंगे। बहुत सारे सपने रामलाल जी ने देख लिए थे। घर में बहू आ जाएगी, बहू के हाथों का स्वादिष्ट नाश्ता, और गरम गरम खाना मिलेगा। हम दोनों बुड्ढा बुड्ढी शैर पर जाएंगे , एक दूसरे के साथ वक्त बिताएंगे। पोता -पोती आंगन में खेलेंगे। तूतलाती हुई भाषा में मुझे दादा और उसे दादी बुलाएंगे। सपने देखते देखते पता ही नहीं चला कब नैनीताल आ गया। रामलाल जी की खुशी का तो ठिकाना ही नहीं था, यह सोच कर की वह कितने सालों के बाद हमेशा के लिए घर लौट रहे हैं। घंटी बजी, सविता जी ने चौक कर अपने मन ही मन कहा, सुबह सुबह कौन होगा। अरे आप अचानक, आने की इतला भी नहीं की, क्यों तुम्हें मेरे आने से खुशी नहीं हुई क्या, नहीं नहीं ऐसी कोई बात नहीं है, अगर खबर कर देते तो, मैं किसी को स्टेशन भेज देती। ठीक है ठीक है नंदू कहां है, वह अपने कमरे में सो रहा है। अच्छा बैठो तुमसे कुछ बात करनी हैमैंने समधी जी से बात कर ली, पंडित जी से मुहूर्त भी निकलवा लिया, आज से ठीक 7 दिन बाद शादी है, वक्त ज्यादा नहीं है। सारे रिश्तेदारों को खबर करनी है, बहू के लिए कपड़े गहने सब लेने है। आखिरकार हमारे इकलौते बेटे की शादी है, कोई कमी नहीं रहनी चाहिए, धूमधाम से बारात लेकर जाएंगे, और बहू को घर ले आएंगे। अभी रात बहुत हो गई है, सो जाते हैं कल से तैयारी में लग जाएंगे, हां ठीक है। दूसरे दिन सुबह रामलाल जी सविता जी से, अरि भागवान उठना नहीं क्या? सुबह के 5:00 बज गए, आप इतनी जल्दी क्यों उठ गए? अभी तो सिर्फ 5:00 ही बजे हैं, मुझे और सोना है। जब से कोलकाता गया हूं, नींद जल्दी खुल जाती है, क्योंकि वहां धूप भी जल्दी आ जाती है, और छोटू उठने के साथ ही मेस से चाय ले आता है, इसीलिए जल्दी चाय पीने की आदत हो गई है, अगर एक कप चाय मिल जाती तो, आप बहुत तंग करते हो आप खुद ही चाय क्यों नहीं बना लेते, रामलाल जी ठीक है बोलकर चाय बनाने चले ,गए। थोड़े दुखी हुए यह सोचकर की सविता कितनी बदल गई, पहले मेरी एक आवाज पर जो हाजिर खड़ी रहती थी, वह आज मुझ से मुंह फेर रही है, लेकिन फिर उन्होंने अपने मन को समझा लिया, 4 दिन की बात है बाद में तो बहू आ जाएगी, सुबह-सुबह बहू के हाथों की चाय मिलेगी, और एक अलग से सुख की अनुभूति होगी।शादी की सारी तैयारिया हो गई, सारे रिश्तेदारों को भी फोन कर दिया गया। अब शादी में मात्र 3 दिन बचे थे। एक दिन शाम को रामलाल जी ने सविता से कहा, चलो थोड़ी पार्क की सैर करके आते हैं, साथ बैठेंगे बातें करेंगे,तो सविता जी ने साफ मना कर दिया यह कहकर कि यह उसका किटी पार्टी जाने का समय है।रामलाल जी को बहुत दुख हुआ, लेकिन उन्होंने अपने चेहरे पर दुख का भाव आने न दिया, और अकेले ही शैर के लिए चल पड़े।नंदू के बाबूजी को अब अंदर से बहुत घुटन महसूस होने लगी, बेटा भी रात को आता और सीधे कमरे में जाकर सो जाता , ना तो हालचाल पूछता, ना कोई और बात करता , पत्नी भी बस अपने ही काम में लगी रहती। वक्त की रस्सी बहुत बड़ी हो गई थी। अब किसी के पास उनके लिए वक्त नहीं था, उन्हें एहसास हो गया था, इस घर में उनकी जगह, टूटे-फूटे बेजान फर्नीचर की तरह, जो कि स्टोर रूम मे पडा रहे, वैसे तो उनके सारे अरमान टूट चुके थे, फिर भी एक बार वह अपनी बहू का बर्ताव भी देखना चाहते थे, इसीलिए वह यहां रुके थे। आखिरकार वो दिन आ ही गया, बहू भी दुल्हन बनकर घर आ गई। शादी के ठीक दूसरे दिन रामलाल जी अपनी बहू से बोले, बेटा एक कप चाय पिला दो अपने हाथों की बनी हुई, मुझे चाय बनानी नहीं आती है, आप खुद बना लीजिए और पी लीजिए, मुझे ऑफिस जाना है देरी हो रही है। पीछे से सविता जी कहती है, ठीक ही तो कह रही है बहू आप खुद ही क्यों नहीं बना लेते चाय, मैं तुम्हारे लिए नाश्ता बना देती हूं तुम तैयार हो जाओ तुम्हें देरी हो जाएगी, ठीक है मम्मी जी, नंदू चुपचाप खड़े होकर यह सब देखता रहा, लेकिन शीला से कुछ नहीं कहा, की तुम्हें बाबूजी से इस तरह से बात नहीं करनी चाहिए थी। बाबूजी की आंखों में आंसू की धारा थी, क्या सोचा था और क्या हो गया, कितने सपने कितने अरमान लेकर बह इस्तीफा देकर अपने घर वापस आए थे, यह सोच कर कि अपना बुढ़ापा अपने परिवार के साथ बिताऊंगा, लेकिन यह मेरी भूल थी। अब बाबूजी सारा दिन एक कमरे में कोने में पड़े रहते, किसी से कुछ बोलते ना कहते, सारा सारा दिन बुखार की हालत में खाली चाय पर जी रहे थे।कई कई दिनों तक नहीं खाने की वजह से, वह अंदर से बहुत ही कमजोर और खोखले हो गए थे। घर का कोई भी सदस्य उन्हें देखने तक नहीं जाता था, कमरे में यह जानने के लिए कि वह जिंदा है भी या नहींएक दिन रात को रामलाल जी की तबीयत अचानक ज्यादा खराब हो गई, उनकी खासी रुक ही नहीं रही थी, तब भी उन्हें देखने कोई आता नहीं, लेकिन खांसी की वजह से उनकी बहू की नींद टूट गई, और वह चिल्लाती हुई आई, और कहने लगी , आपको तो कोई काम धाम है नहीं, लेकिन मुझे सुबह ऑफिस जाना है। रामलाल जी को उस समय खून की उल्टियां हो रही थी, बजाय उनकी चिंता करने के वह चिल्ला रही थी। नंदू मुझे लगता है कि इन्हें किसी बड़ी बीमारी ने घेर लिया है, या तो यह इस घर में रहेंगे या मैं,एक काम करो इन्हें किसी सरकारी अस्पताल में भर्ती करवा दो।तुम परेशान मत हो एक बार डॉक्टर को दिखा देते हैं, हो सकता है कि उनकी बीमारी ठीक हो जाए। नंदू सुबह डॉक्टर को ले आया, डॉक्टर ने जांच की, बताया कि मुझे शक है इन को टीवी हो गई है, एक बार टेस्ट करवा लीजिए, जांच के बाद पता चला, रामलाल जी टीवी से पीड़ित है। अब शीला से रहा नहीं गया, देखो मैं कह देती हूं या तो यह रहेंगे या मैं रहूंगी, इनके बीमारी के जर्मस मुझे लग गए तो, सरकारी अस्पताल में एडमिट करवा दो।बहु तुम परेशान मत हो, मेरे कंधे बूढ़े हुए हैं, उम्मीद टूटी है, शरीर से बीमार हूं,भले ही मैंने अपनी सारी जमा पूंजी लगा दी, लेकिन फिर भी भुजा में इतना बल है, कि आज भी अपना बोझ उठा सकता हूं। मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं है,क्योंकि जब मेरी बीवी और मेरा बेटा ही मेरे नहीं हुए, तुम तो फिर भी पराए घर से आई हो। यह कहते हुए उन्होंने नैनीताल फोन लगाया और पूछा क्या बह पोस्ट अभी भी खाली है, तो वहां से जवाब मिला हां, लेकिन रामलाल जी आप तो इस्तीफा देकर चले गए थे ,फिर वापस, नहीं कोई जरूरत आन पड़ी है बस ऐसे ही, मैं आ रहा हूं यह कह कर फोन रख दिया। मैं कल ही यहां से निकल जाऊंगा।जाते जाते एक बात जरुर कहना चाहूंगा,की जो पेड़ छांव देते हैं, बच्चे उन्हीं को कैसे काट देते है, जो बाप अपनी पाई पाई मैं बच्चे को काबिल बनाने में लगा देता है, वही बच्चा उसके आखिरी पलों में सहारा देने से क्यों कतराता है। वह यह नहीं समझते कि जो आज हमारा है वह कल उनका होगा, आज हम बूढ़े हुए है कल वो भी होंगे।मेरी यह पोस्ट आपको कैसी लगी दोस्तों,अपने विचारों से जरूर अवगत कराईयेगा।

अगर पसंद आए तो लाइक,कमेंट और शेयर जरूर कीजिए, क्योंकि मुझे आपकी प्रोत्साहन की बहुत जरूरत है।

@ मनीषा भरतीया

1 likes

Published By

Manisha Bhartia

manishalqmxd

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.