Title कोरे -कोरे पन्ने

कोरे कोरे पन्नो पर जब में कलम चलाती हूँ

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Mamta Gupta
Mamta Gupta 30 Jun, 2020 | 1 min read

फुर्सत के पल अपनी डायरी के साथ बिताती हूँ।

कोरे कोरे पन्नो पर जब मैं कलम चलाती हूं।


अपने दिल की बातों और यादों से

इसके हर एक पन्ने को सजाती हू।

कोरे कोरे पन्नो पर जब मैं कलम चलाती हूँ।


प्यार के पहले अहसास को जब में इन पन्नो के साथ बाटती हूँ तब मन ही मन मुस्कुराती हूँ।

कोरे कोरे पन्नो पर जब में कलम चलाती हूँ।।


अपने दर्द की स्याही बनाकर ,पन्नो पर दर्द को लिखती हूँ,आंखों के अश्रुओं से इसके ह्दय को भिगोती हूँ।

कोरे कोरे पन्नो पर जब में कलम चलाती हूं।


रात का अंधेरा हो या दिन का उजाला

जब भी खुद को खुद को इन पन्नो की तरह तन्हा महसूस करती हूं।

 कोरे कोरे पन्नो जब मैं कलम चलाती हूँ।


क्या पाया क्या खोया ज़िंदगी में कितना मान सम्मान मिला ज़िंदगी मे सभी रिश्तो का हिसाब इन पन्नो मे

लिखती हूँ ।

कोरे कोरे पन्नो पर जब मैं कलम चलाती हूँ।।


माना अब जमाना ऑनलाइन का है सभी वही मिल जाते हैं, लेकिन जो सुकून अपने आप से बात करने में मिलता हैं, वो सब अपनी डायरी को बताती हूं।

कोरे कोरे पन्नो पर जब मैं कलम चलाती हूँ।।


बस इस इन कोरे - कोरे पन्नो को अपनी ज़िंदगी के हर रंग से रंगीन कर देती हूँ। कोरे- कोरे पन्नो पर जब मैं कलम चलाती हूं।


ममता गुप्ता  (अलवर) राजस्थान।

स्वरचित व मौलिक

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