लघुकथा

पति की अर्धांगिनी की जगह उसके जीवन का पूरा हिस्सा बनने वाली साहसिक औरत की कथा

Originally published in hi
Reactions 2
480
Kusum Pareek
Kusum Pareek 08 Sep, 2020 | 1 min read
Relationship

पूर्णांगिनी

"अरे करमजली !थोड़ी तो सरम कर ,इतने बड़े लोगों के सामने मुंह खोल कर खड़ी है और पटर - पटर किए जा रही है। "

कम्मो के ससुर ने उसके बोलने पर भरी पंचायत में उसे चुप कराने की भरपूर कोशिश जारी रखी ।


लेकिन कम्मो पर तो एक शेरनी की तरह जुनून छा रहा था ।

वह पंचायत को सम्बोधित करते हुए बोली,

" मैं इतने साल चुप ही रही और रीति रिवाजों ,परम्पराओं ,भाग्य व बड़ों के सम्मान के नाम पर --कभी भी मुंह नहीं खोला । आपने धोखे से अपने दिमाग से कम विकसित बेटे के साथ मेरी शादी करवा दी और अब उससे जमीन के कागजों पर अंगूठा लगवाने की साज़िश रच रहे हैं ।"

"और आपको यह भी अच्छी तरह पता होगा कि आपके बेटे की यह हालत हुई कैसे? "

"भूले तो नहीं होंगे न उस दिन को --जब नई पत्नी के कहने में आकर उस बिन माँ के बच्चे को पोस्त देकर सुला दिया करते थे।"

"शर्म आती है मुझे(,पिच्च करते हुए उसने ससुर की तरफ थूक दिया) आपको ससुर कहते हुए भी।"


"आप सब यह कैसे भूल गए कि जिस औरत ने इतने साल तक अपने इस निर्दोष पति का साथ दिया है ,वह अब इस अन्याय को सह जाएगी और अपने बच्चों का हक़ आपको लेने देगी?"

 कहते हुए उस भोली अर्धांगिनी ने ...चंडी रूप में पूर्णांगिनी बनते हुए ससुर के हाथ से जमीन के कागज़ात छीन कर चिन्दियों में उड़ा दिए।


कुसुम पारीक 


मौलिक,स्वरचित

2 likes

Published By

Kusum Pareek

kusumu56x

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.