सारंगा

' लघुकथा संग्रह '

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Kamlesh Vajpeyi
Kamlesh Vajpeyi 25 Jan, 2022 | 1 min read

'' एक पाठकीय समीक्षा '' 

" सारंगा " (लघुकथा संग्रह) 

लेखिका : ज्योत्स्ना सिंह 

प्रकाशक " शारदेय प्रकाशन" लखनऊ 

'' अमेजन " पर भी उपलब्ध 


'सारंगा ' ज्योत्सना सिंह जी द्वारा रचित, 85 लघुकथाओं का अत्यंत सुन्दर कथा-संग्रह है. 

" लघुकथा" लेखन की एक अत्यंत महत्वपूर्ण विधा है. 


लेखिका ने पुस्तक अपने स्वर्गीय माता-पिता को सादर समर्पित की है. ज्योत्स्ना जी की रचनाएं बहुत से सम्मानित और प्रतिष्ठित राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में स्थान पा चुकी हैं. 

फेसबुक के भी कई प्रतिष्ठित साहित्य - वर्गों  

वे नियमित रूप से से लिख रही हैं और बहुत लोकप्रिय भी रही हैं उन्हें बहुत सी रचनाओं पर पुरस्कार भी मिले हैं. 

'सारंगा' उनका प्रथम लघुकथा संग्रह है. सभी रचनाएँ अत्यंत भावपूर्ण और ह्रदयस्पर्शी हैं


"लघुकथा कलश" के सम्पादक श्री योगराज प्रभाकर जी द्वारा लिखित " प्राक्कथन " पुस्तक की समस्त विशेषताओं का उल्लेख करते हुए अनायास ही पाठक को पढ़ने के लिए प्रेरित करता है. 


' पूरी दुनिया' में पति पत्नी का अगाध प्रेम परिलक्षित होता है. सदानन्द जी की अल्जाइमर ग्रस्त पत्नी ही उनकी ' पूरी दुनिया"की सीमा है. 


' प्रवासी पक्षी. ' में विदेश में बस गए दोनों भाई, जाने से पहले , अपने बचपन में लगाये गये मौलश्री-व्रक्ष के नीचे. अन्तिम रात्रि व्यतीत करने का निश्चय करते हैं. 


' ह्रदयों में अन्तर ' में भाइयों के वैमनस्य के बीच अन्ततोगत्वा प्रेम ही विजयी होता है. 


 " सूखी फुनगी " एक अत्यंत मर्मस्पर्शी रचना है, पत्नी के न रहने पर, एक ग्रामीण परिवेश में, उपेक्षित और व्यथित पति अपनी व्यथा-कथा अपनी पत्नी को लिखता है, वह उसके घर के ' बिरवा ' की जड़ थी, जो हिल जाने से.. वह मात्र एक ' सूखी फुनगी ' , रह गया है. 


 " थोथा नारा " एक ऐसी लघुकथा है जो वर्तमान चुनाव के परिवेश में भी बहुत सामयिक है. नारे लिखने वाले के लिए,नारा लिखना, मात्र जीविका का माध्यम है. वह निर्विकार भाव से, सभी पार्टियों के लिए नारे लिखता रहता है. जो अपने आप में परिपूर्ण भी हैं. सभी अपनी-अपनी आवश्यकता के अनुसार ले जाते हैं. 


" असल धुरी" सत्य, धर्म और झूठ की पारस्परिक प्रतिस्पर्धा में.. अन्ततः यह निर्णय होता है कि असल धुरी तो कर्म ही है....! और झूठ, अपनी तेज़ चाल के बावज़ूद भी तो औंधे मुंह गिर ही जाता है.. 

" बुद्ध - पूर्णिमा " की कर्मठ माई गौतमबुद्ध के उपदेशों की चर्चा पर, अपने बेटे को कर्मशीलता की ही शिक्षा देती है.. जीवन से पलायन, संसार के दुखों का निवारण नहीं करता..! 

 '' अदृश्य और दृश्य '' एक अत्यंत मर्मस्पर्शी रचना है. जो स्पष्ट करती है कि '' मन की धूल '' ज्ञान की झाड़न से ही साफ़ होती है और ये ज्ञान, निर्विवाद रूप से, संसार की हर पवित्र पुस्तक में भरा पड़ा है.. जरूरत है तो बस पढ़ने की. 


'' वर्तमान '' में एक पिता, दाने चुंगती हुयी चिड़ियों को देखकर अपनी बेटियों की स्मृति में खो जाता है जो आज ही शरद ऋतु की छुट्टियाँ बिता कर अपनी-अपनी ससुराल चली गई हैं.. वे चिड़ियों में, अपनी बेटियों को देखते हैं. अपने घर के '' वर्तमान '' को दूसरों के घर का भविष्य संवारने के लिए विदा करने का ह्रदय, एक पिता का ही हो सकता है..! 


" बसेरा " एक अन्य ह्रदयस्पर्शी रचना है.. जिसमें दूरदेश में बसा एक पुत्र, अपने पिता की अस्थियां विसर्जित कर, नदी किनारे विचार करता है. काश ऊंचाइयां भले ही कुछ कम रही होतीं, बसेरा तो अपने प्रियजनों के मध्य रहा होता..! किन्तु उसकी पुत्री उसे इस उहापोह से बाहर निकाल लेती है..!

कुछ, बहुत अच्छी कहानियां मुस्लिम परिवेश से भी हैं. 

'' गेम '', बकरीद, " तहरीर ''गरारा', 'लत :और ' दाई', " वो बंद दरवाज़ा" उसके अच्छे उदाहरण हैं. 


'' पूजा के स्वर " बांग्ला प्रष्ठभूमि में एक मर्मस्पर्शी रचना है. 


सभी कहानियाँ ह्रदयस्पर्शी और पठनीय हैं. 



कमलेश वाजपेयी.. 











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Kamlesh Vajpeyi

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