एक गुज़ारिश

A beggar's prayer

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Juhi Prakash Singh
Juhi Prakash Singh 26 Jun, 2021 | 1 min read

रास्तों में बैठा वह लाचार

देखता है जीवन की तेज़ रफ़्तार


आते जाते सब उसको करते दरकिनार

नहीं किसी की निगाह उस पर टिकती एक भी बार

इंसानियत की रूह अब मर चुकी है

मदद के हाथ अब बढ़ते नहीं हैं

मजबूर है जीने को समाज की फेंकी हुई झूठन पर तार तार होती अपनी ज़िन्दगी को जीने पर

गर्मी हो या बारिश रहता है फुटपाथ पर

अब यही है उसका बिन छत का घर

हे उपरवाले कुछ तो रहम कर

बख्श दे अपनी मुझ पर एक नज़र

ले चल अब मुझे अपनी बाहों में लपेटकर

कहीं दूर जहां न मिलें अब औऱ दुःख के मंज़र 

- जूही प्रकाश सिंह 



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