वह है उसके कहीं आस-पास बताती है उसकी पायल की झंकार
बहार-ए-दिल जाती है खिल जब वह सुनता है इनकी मधुर गुंजार
महल के सूने गलियारों में जब गूंजती थीं पायलों की खनखनाती झंकारें,
होगा अब रानी का राजा से मिलना ये जान जाती थी समस्त महल की दीवारें
बहु रानी के कदम हवेली के किस कोने में हैं पड़ रहे
जान लेती थी उसकी सासु- माँ बिना कुछ कहे कुछ पूछे
दिन- भर के काम-काज करके पूरे आखिर आ रही है उसकी प्यारी पत्नी अब उसी के पास,
बता देती थीं ये पत्नी की पायलों की झंकार व जगा देती थीं बेचैन पति के सीने में मिलन की मीठी- सी आस
पहन इन्हीं घुंघरू की पायलों को कृष्ण भक्ति में लीन हो नाची थीं संत मीराबाई,
अपने भक्ति- नृत्य को बना माध्यम पा लिए थे उन्होंने अपने साईं
सदियों से ये पायलों की झंकार बनी है प्रीतमा की अपने प्रीतम से उससे आ मिलने की एक ललकार
"आ जा ओ मेरे प्रीतम मिल जा अब तू मुझमें ", कहती रहीं हैं जन्मों से ये पायलें
-©️जूही प्रकाश सिंह
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