तेरी सौगात

अकेलेपन का एक चित्रण

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Juhi Prakash Singh
Juhi Prakash Singh 29 Jan, 2021 | 1 min read

तेरी सौगात


ना रही सर्दी की घूप में वह तपिश

न रही चिड़ियों की चहचाहट में वह कशिश


कैसे लाऊँ जीने की वही उमंग

जब तेरा साथ था और थी मन में खुशियों की तरंग


बिन तेरे ज़िन्दगी है बिल्कुल बेरंग

जैसे एक अंतहीन काली सुरंग


कहते हैं समय सब ठीक कर देता है

मन के घावों को भी भर देता है


लेकिन घाव भले ही भर जाएंगे

दाग पीछे रह जायेंगे


दागों को तेरी सौगात मानूंगा

इन्हीं के सहारे अब रह लूँगा

- जूही प्रकाश सिंह

#1000 poems

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Juhi Prakash Singh

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