Juhi Prakash Singh
Juhi Prakash Singh 09 May, 2022
मुहावरों की गाथा-4
कभी डेढ़ चावल की खिचड़ी पकती है, वहीँ किसी को दाल में काला दिखाई देता है , घर का निकम्मा घर की रोटी मुफ्त में तोड़ता है तो कभी कोई किसी की दाल भात में मूसरचंद बन जाता है वही कभी कोई किसी के कबाब में हड्डी बन नज़र आता है औऱ अगर कहीं गरीबी में आटा गीला हो गया तब वाकई आटे दाल का भाव समझ में आ जाता है

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by juhiprakashsingh

09 May, 2022

# microfables contest

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