डायरी से

डायरी के पन्नों से

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Jahaji sandesh
Jahaji sandesh 03 May, 2021 | 1 min read
#memory

जीवन मे एक पल ऐसा जरूर आता है जब आप किसी से दिल खोलकर बातें करना चाहते हो लेकिन आप कर नहीं पाते क्योंकि आपको वो बातें किसी से नहीं ,किसी अपने से करनी होती है.....

आज के दौर में लोग ज़्यादा है रिश्ते कम पड़ गए...!

इसी दौर में जब आप बचपन को लिखते हो तो लोग उसको जवानी समझते हैं,जब आप हक़ीक़त लिखते हो तो उसको कहानी समझते हैं,और दर्द कितना भी हो......आपको.....

सबके सामने मुस्कुराना पड़ता है,

अब लोग आपके आंसुओं को भी पानी समझते हैं....!


किसी ने मुझसे पूछा कैसे हो आप ?

हमनें उसको अपनी तबियत बताई,

वो जोरों से हँसा ! 

"मज़ाक था.."

कहकर हमनें थोड़ी सी बची हुई इज्जत छिपाई...

अब किसी और के पूछने पर कैसे हो आप !

क्या बताऊँ किसका मरीज़ हूँ

अंदर से टूटा हुआ,

बस कहता हूँ ...."ठीक हूँ",

नहीं समझ आता क्यों कर रहा हूँ किसी लक्ष्य को पाने का प्रयास,

अक्सर लगता है एक को पाया दूसरे लक्ष्य के समीप हूँ,

बस मैंने अब हर गम को छिपाने का हुनर सीख लिया है,

हाँ बेवज़ह ही सही, मुस्कुराने का हुनर सीख लिया....है।



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