ज्ञान

ज्ञानचक्षु खुल गये तो खेल समझ लिया सारा

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Ektakocharrelan
Ektakocharrelan 20 Feb, 2021 | 1 min read
#1000 poems

बहुत फक्र करता खुद पर इंसान,

चाल ढाल अनोखी इसकी !!

नहीं इस सा ज्यूं किसी को ज्ञान।


चंद रुपयों से सब खरीदना चाहे,

अपना सा सामर्थ्यवान भला कहां किसे पाये।

भूल जाता है ईश की बदौलत मिला सब-

 रहमत बिना तो पत्ता भी ना हिल पाये।


दें भूले से अगर दान तो सोचे एहसान कर दिया,

खुदा की इस सृष्टि में ज्यूं बड़ा काम कर किया।

खुलती आँखों की पट्टी मन मसोस रह जाता है-

नहीं जाने हर निवाले का सिर्फ प्रभु ही जरिया।


ज्ञानचक्षु खुल गये तो खेल समझ लिया सारा,

अज्ञानता दूर हुयी तभी मन नतमस्तक बेचारा!!


एकता कोचर रेलन

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