इतेफा़क

मेरा मझसे मिलना इतेफाक ना था ये,

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Ektakocharrelan
Ektakocharrelan 17 Feb, 2021 | 1 min read
#1000 poems

इतेफा़क

 मेरा मझसे मिलना इतेफाक ना था ये,

लोग सुनाते गये हम सुनते रहे!!

आम ना था ये!!


समझ ना सका कोई मेरी अन्तर्मन की पीड़ा,

तिल- तिल कर जली तभी पत्थर बनी!!

राज़ गहरा था सरेआम ना ये!!


मेरी चुप्पी को वो मेरी समझते रहे कमजोरी,

 मजबूरी मेरी भरती रही मुझमें मजबूती!!

चुटकी बजा नहीं हुआ काम ये!!


समय जब भी तपाता है अपनी तपन में,

विरक्ति के भाव उत्पन्न होते हैं तभी!!

नहीं है कोई रहस्य की बात ये!!


रंगीन ये दुनिया अक्सर खींचती है मुझे,

पर नूर से मिल कर हो गई पाक रे!!

मिट्टी की ये देह तू कर इंसाफ़ रे!!


मेरा मझसे मिलना इतेफाक ना था ये,

लोग सुनाते गये हम सुनते रहे!!

आम ना था ये!!

एकता कोचर रेलन

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