मन की होड़

जीवन मरण के चक्र से जुड़े पर आसमां को कैद करने की होड़ में पडे

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Ektakocharrelan
Ektakocharrelan 16 Feb, 2021 | 1 min read
#1000 poems

विधा- पद्य

शीर्षक- मन की होड़

जीवन मरण के चक्र से जुड़े 

पर आसमां को कैद करने की होड़ में पडे 

ईश्वर की बहुमूल्य सौगात ये जीवन

पर दो घड़ी उस प्रभु के लिए वक्त ना मिले

मन की हौड़ कुछ और है अब

 लेगा विराम कहां कुछ पता नहीं कब? 

महल में भी उसे सुकून नहीं अब

सामने परोसे सो पकवान 

पड़ोस की महक अच्छी लगे अब

मानव मन जकड़ा है खवाईशों में निरन्तर

दौर कुछ ऐसा आगे बढने का अब

फतेह का चढ़ा जुनून

कौन जाने फतूर उतरेगा किस क्षण

चक्रव्यूह में फंसे अभिमन्यु 

निकले कैसे इससे अब

व्यथा बहुत गहरी है

जंजीरों में जकड़ी आत्मा व्यथित

कैसे बाहर निकले अब

एकता कोचर रेलन

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